नई दिल्ली। क्रिकेट के सबसे छोटे संस्करण टी-20 ने सबसे लंबे संस्करण टेस्ट क्रिकेट पर संकट के बादल गहरा दिये हैं। इसके दो ताजा उदाहरण हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष ग्रेग बार्कले हाल ही में चिंता जता चुके हैं कि छोटे प्रारूप की बढ़ती प्रतियोगिताएं द्विपक्षीय सीरीज, खासकर टेस्ट क्रिकेट के भविष्य के लिए खतरा हैं। दूसरा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का वह संकेत कि आने वाले सालों में आईपीएल के लिए दरवाजे और बड़े किए जाएंगे।
टेस्ट क्रिकेट के भविष्य के प्रति चिंता कोई नई बात नहीं है। लगभग तीन दशक पहले जब एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों की लोकप्रियता अचानक बढ़ने लगी, तब आईसीसी के फ्यूचर टूर प्रोग्राम में टेस्ट मैचों की संख्या में कमी आने लगी। एक दिनी मैचों के प्रति बढ़ता आकर्षण अंततः टेस्ट मैचों में कटौती का कारण बना। एशेज समेत एक-दो अपवाद छोड़ दिए जाएं तो पिछले कुछ वर्षों से द्विपक्षीय सीरीज में सीमित ओवरों के मैच अधिक और टेस्ट मैच की संख्या कम हो गई। कई सीरीज में टी-20 और एक दिनी मैचों के मुकाबले टेस्ट मैचों की संख्या दो या तीन ही रह गई है।
टेस्ट क्रिकेट के कम होते रोमांच को बचाने के लिए आईसीसी ने टेस्ट चैंपियनशिप की शुरुआत की। हालांकि इसका अपेक्षित परिणाम नहीं दिख रहा है। पिछले साल पहली टेस्ट चैंपियनशिप न्यूजीलैंड ने भारत को हराकर जीती थी। इसका फाइनल इंग्लैंड में खेला गया था। इस टेस्ट चैंपियनशिप पर भी टेस्ट खेलने वाले देश सवाल उठा चुके हैं। इसकी अंक प्रणाली को दोषयुक्त बताया गया है। ऐसे में आईसीसी को इसपर फिर से विचार करना होगा।
इसी बीच एक विचार यह भी आया है कि टेस्ट क्रिकेट को बचाने के लिए इसकी अवधि कम की जा सकती है। साथ ही नियमों में कुछ परिवर्तन के जरिए इसे आक्रामक और मनोरंजक भी बनाया जा सकता है। वैसे भी सीमित ओवरों के क्रिकेट के आगाज के बाद से कई ऐसे टेस्ट मैच देखे गए हैं, जो तीन से चार दिन में खत्म हो गए। कुछ दिग्गजों का मानना है कि आज की पीढ़ी के क्रिकेटर पिच पर रुककर बल्लेबाजी करना पसंद नहीं करते। उन्हें आक्रामक और लंबे स्ट्रोक खेलना अच्छा लगता है। ऐसी स्थिति में टेस्ट मैचों की अवधि में बदलाव किया जाय तो संभवतः क्रिकेट के इस सबसे पुराने स्वरूप को थोड़ी संजीवनी मिल सकती है।
फोटो- सौजन्य गूगल