आधुनिक होते हुए भारत के लेखक है जयशंकर प्रसाद- प्रो आशीष त्रिपाठी
कामायनी पुरुषार्थ का महाकव्य है- प्रो0 श्रद्धानन्द
जयशंकर प्रसाद का सम्पूर्ण साहित्य राष्ट्र निर्माण एवं राष्ट्र की संकल्पना से ओत-प्रोत है। उनके साहित्य में प्रेम, करुणा, दया, ममता आदि के भाव को महसूस किया जा सकता है। उक्त बातें प्रो0 सुरेंद्र प्रताप, पूर्व आचार्य, हिंदी विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी ने “जयशंकर प्रसाद के सृजनात्मक साहित्य में राष्ट्रवाद की अवधारणा” विषयक तीन दिवसीय नाट्योत्सव एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी के तीसरे दिन के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा। उन्होंने यह भी कहा कि कामायनी एक महाकाव्य के साथ-साथ एक सफल कृति है, इसका पुनर्मूल्यांकन एवं पुनर्व्याख्या होना चाहिए। इस सत्र के मुख्य वक्ता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पधारे प्रो0 आशीष त्रिपाठी ने कहा कि राष्ट्र की संकल्पना प्रसाद के साहित्य में प्रबल है, वे आधुनिक होते हुए भारत के लेखक है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रसाद जी ने अपने साहित्य सृजन से स्वच्छन्दतावाद और यथार्थवाद को एक सूत्र में जोड़ने का काम किया है। इस सत्र के विशिष्ट वक्ता डॉ0 राम सुधार ने कहा है कि प्रसाद का साहित्य स्त्री स्वाधीनता एवं संघर्ष की महागाथा है। आगे उन्होंने कहा कि सतत जागरूक चेतना के लेखक के रुप में अकेले जयशंकर प्रसाद है, जो रवींद्रनाथ टैगोर की बराबरी कर सकते हैं। इस सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ0 संगीता घोष ने प्रसाद के काव्य में संगीतमयता पर अपना सारगर्भित वक्तव्य दिया। इस सत्र का संचालन डॉ0 सुरेंद्र प्रताप सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो0 अनुराग कुमार ने किया।

समापन सत्र के पहले चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो0 श्रद्धानन्द, पूर्व आचार्य, हिंदी विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी ने कहा कि जयशंकर प्रसाद के साहित्य में मनुष्यता, मानवता के साथ ही साथ उच्च भाव भूमि की प्रबल स्थापना हुई है। काशी दर्शन की भाव भूमि है, यहाँ कंकड़-कंकड़ में शंकर है, जो जड़ में चेतन का आभास कराता है। आगे उन्होंने बताया कि प्रसाद की कामायनी पुरुसार्थ का महाकव्य है। स्वातंत्र्य चेतना और मुक्ति की कामना प्रसाद के साहित्य का मूल है। वास्तविक साहित्य की कसौटी हमें प्रसाद के साहित्य में देखने को मिलती है। इस सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. राकेश सिंह निशाकर ने ऑनलाइन माध्यम से जुड़कर कहा कि जयशंकर प्रसाद के नाटक में दार्शनिक उद्भावना के साथ विचारों के भाष्य उपस्थित होता है। प्रसाद जी ने मनोभावों का बहुत ही सुंदर विश्लेषण किया है। इस सत्र के विशिष्ट वक्ता डॉ. आशुतोष चतुर्वेदी ने कहा कि प्रसाद का पूरा साहित्य दर्शन में ही निमज्जित है, उनके पास शब्द का अपार सागर है, उनके शब्दों का चयन अद्भुत है। विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ. अर्चना त्रिपाठी ने बताया कि जयशंकर प्रसाद जी अपने साहित्य में इतिहास का उत्खलन करते हैं। उनके साहित्य में इतिहास का अनुशीलन हुआ है और वे अतीत से वर्तमान को जोड़ते हैं। इस सत्र का संचालन डॉ0 सुनील विश्वकर्मा एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 सुरेंद्र प्रताप सिंह ने किया। इस सत्र के पहले प्रतिभागी सत्र का आयोजन हुआ था, जिसमें दीपशिखा, स्तुति, दुर्गा प्रसाद, प्रशांत आदि ने अपने-अपने शोध पत्रों का वचन किया। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो0 रामाश्रय सिंह ने जयशंकर प्रसाद के साहित्य को अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ जोड़ते हुए अपना वक्तव्य दिया। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ0 सपना भूषण ने बताया कि प्रसाद के साहित्य का मूल आदर्श की स्थापना है तथा उनके साहित्य में राष्ट्र की प्रबल भावना विद्यमान है। इस सत्र का संचालन शोध छात्रा आरती तिवारी एवं धन्यावाद ज्ञापन डॉ0 प्रीति ने किया।
इस अवसर पर श्रीमती कविता, श्री अवधेश, प्रो0 निरंजन सहाय, प्रो0 राजमुनी, प्रो0 रामाश्रय सिंह, प्रो0 अनुकूल चंद राय, प्रो0 नरेंद्र नारायण राय, प्रो0 इशरत जहां, प्रो0 दानपति त्रिपाठी, डॉ0 दिनेश चंद्र शुक्ल, डॉ0 विजय रंजन, डॉ0 कविता आर्या, डॉ0 सुमन ओझा, डॉ0 गोपाल, डॉ0 शैलेश, डॉ0 वीरेंद्र, डॉ0 वर्षा सिंह, डॉ0 स्नेहलता, डॉ0 नलिनी सिंह, डॉ0 अर्चना, डॉ0 जयप्रकाश, डॉ0 पाठक, के साथ शोध छात्रों में दीपक, अंकित, बलिराम, अभिषेक, आकाश, अमित, मनीष, प्रवीण, प्रेम प्रकाश गुप्ता, शिवशंकर, प्रज्ञा, प्रियंका, वरुणा, वागीश, विनोद, रीतू, सूरज, रुद्रप्रकाश, आशुतोष, सौम्या, आकांशा, रीता के साथ भारी संख्या में छात्र – छात्राएँ मौजूद रहें।
आज सायंकाल नाट्योत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत “कामायनी” का नाट्य-मंचन किया गया, जिसका निर्देशन डॉ0 शुभ्रा वर्मा एवं प्रस्तुति ललित कला विभाग महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ द्वारा हुई। नाट्य-मंचन का आरम्भ कुलपति प्रो0 आनन्द कुमार त्यागी के उद्बोधन से हुआ। इसका संचालन डॉ0 रामसुधार ने किया। नाट्य-मंचन से पहले शिव स्तुति अभिजीत चक्रवर्ती द्वारा प्रस्तुति की गई। इस अवसर पर प्रो0 अनुराग कुमार, डॉ0 सुनील विश्वकर्मा एवं जयशंकर प्रसाद की प्रपौत्री कविता जी का सम्मान कुलपति जी द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में प्रो0 अनिता सिंह, प्रो0 पीताम्बर दास, प्रो0 के0के0 सिंह, प्रो0 शेफाली ठकराल, प्रो0 शिवराम वर्मा, प्रो0 सुमन जैन, प्रो0 ऋचा सिंह, डॉ0 जितेंद्र नाथ मिश्र, डॉ0 विनोद कुमार सिंह, डॉ0 दुर्गेश उपाध्याय सहित अन्य लोग भी उपस्थित थे।