आर. संजय
पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय टीम ने जिस अंदाज में जीत हासिल की, पूरे देश ने खिलाड़ियों को पलकों पर बिठा लिया। तरह-तरह के कसीदे गढ़े गए। कुछ खिलाड़ियों की कमजोरियां भी इसके नीचे पूरी तरह दब गईं। यहां यह भी कहना जरूरी है कि हार और जीत मैच का हिस्सा हैं। कोई भी टीम अजेय नहीं है। कोई टीम कमजोर भी नहीं है। खासकर क्रिकेट के इस सबसे छोटे फार्मेट में।
कभी हार पर टीमों और खिलाड़ियों को कोसा जाता है। कभी यह मान कर संतोष कर लिया जाता है कि शायद भाग्य ने साथ नहीं दिया। एक छोटी सी गलती किसी टीम को हार की कगार पर पहुंचा देती है। हालांकि जिसकी गलती होती है, उसे यह कहकर भुला दिया जाता है कि यह मात्र संयोग रहा होगा। लेकिन, अगर एक मैच में एक से ज्यादा या यह कहें कि करीब आधा दर्जन बार गलतियां हुईं। दो-तीन गलतियों के बाद भी टीम जीत की ओर बढ़ती दिख रही हो। इसके बावजूद गलतियां हों और टीम हार जाए।
यह जलेबी जैसे शब्द भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच रविवार को खेले गए मैच में अंतिम ओवर तक बुनते रहे। 10वें ओवर तक दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाजों को एक-एक रन बनाने में मुश्किल हो रही थी। ड्रिंक्स के दौरान मिलर और मार्करम ने ऐसी कौन सी संजीवनी पी ली, जो उनके बल्ले आग उगलने लगे। या भारतीयों को कौन सी घुट्टी पिला दी गई कि गेंदबाजी और फील्डिंग का स्तर एकदम नीचे गिर गया। यहां तो यही कह सकते हैं कि भारतीयों ने या तो कुल्हाड़ी अपने पैर पर मार ली, या कुल्हाड़ी पर ही पैर मार दिया। कल जीत लेते तो सेमीफाइनल सामने खड़ा होता। इस हार के बाद अब यह दूरी काफी बढ़ गई है। अब आगे के मैचों में दूसरी टीमों के परिणाम भी महत्वपूर्ण भूमिका में आ गये हैं।
यॉर्कर गेंदें कैसे भूल गए शमी और भुवनेश्वर
विश्व कप शुरू होने से पहले ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अभ्यास मैच में अंतिम ओवर डालने आए मोहम्मद शमी ने यॉर्कर गेंदें फेककर दो विकेट हासिल किए थे। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ रविवार को इसकी झलक भी नहीं दिखी। दो ओवर में 12 रन बनाने थे। 19वें ओवर में शमी ने छह रन दिए। क्रीज पर एक नया बल्लेबाज मौजूद था, लेकिन शमी ने यॉर्कर नहीं फेकी। भुवनेश्वर अंतिम ओवर लेकर आए, जिसमें छह रनों की दरकार थी। उन्हें तो टी-20 का विशेषज्ञ भी कहा था। इस ओवर में भी य़ॉर्कर के दर्शन नहीं हुए।