वाराणसी। आईआईटी बीएचयू के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी प्राकृतिक विधि का परीक्षण किया है, जिससे पेयजल से भारी और घातक धातुओं को लगभग खत्म करके पेयजल को शुद्ध किया जा सकता है। निकिल, कॉपर और जिंक जैसी इन धातुओं को पानी से 98 फीसदी तक अलग करने में सफलता मिली है।

आईआईटी बीएचयू के स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग के शोधकर्ताओं ने गंगा किनारे सामने घाट से मिट्टी ली और बेंटोनाइट मिट्टी के साथ मिश्रण करके पात्र तैयार किए। इन पात्रों में जब गंगा का पानी डाला गया तो पाया कि सिर्फ आधे घंटे में पानी से भारी धातुओं को निकालने में कामयाबी मिल गई। यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी (IJEST) में प्रकाशित हुआ है, जिसका प्रकाशक स्प्रिंगर है ।
रिसर्च के बारे में जानकारी देते हुए संस्थान के डॉ. विशाल मिश्र ने बताया कि पानी को साफ करने की यह विधि काफी सस्ती भी है। बेंटोनाइट प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला मिट्टी का खनिज है। यह आसानी से उपलब्ध होता है और पानी से स्वास्थ्य के लिए खतरनाक धातुओं को निकालने में काफी कारगर भी है। डॉ. मिश्र के निर्देशन में शोध करने वाली ज्योति ने बताया कि इन दिनों वाटर प्यूरिफायर और अन्य तकनीक से पानी को शुद्ध कर लिया जाता है, लेकिन सीधे नलों से मिलने वाले पानी में भारी धातुओं की काफी मात्रा होती है। उन्होंने बताया कि मिट्टी में सोखना तब होता है, जब घोल के घटक मिट्टी के कणों की सतह से चिपक जाते हैं। यह प्रक्रिया मिट्टी की सतह के अकार्बनिक और कार्बनिक घटकों के साथ-साथ संबंधित पर्यावरणीय परिस्थितियों से प्रभावित होती है। मिट्टी के कणों में मिट्टी के घटकों, पौधों के पोषक तत्व, सर्फेक्टेंट, कीटनाशक और मिट्टी के घोल में पाए जाने वाले पर्यावरण प्रदूषकों सहित कई तरह के यौगिक शामिल हो सकते हैं।
वाराणसी में नदी के प्रवाह में वर्षा अहम कारक
डॉ विशाल मिश्रा ने बताया कि वाराणसी में साल भर में वर्षा में बड़े अस्थायी बदलाव के कारण, नदी के प्रवाह की विशेषताएं काफी भिन्न होती हैं। डाउन-स्ट्रीम सैंपलिंग स्टेशनों में सभी भारी धातुओं की मात्रा बढ़ गई थी। सामने घाट उन स्थलों में से एक था जहां से नमूने एकत्र किए गए थे। सामने घाट का चयन करने का एकमात्र कारण इसका उच्च जनसंख्या घनत्व है, जो अनुपचारित औद्योगिक और घरेलू कचरे को जल निकायों में छोड़े जाने से जल प्रदूषण में योगदान देता है। घरों और आसपास की औद्योगिक इकाइयों से प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं। अपशिष्ट जल से भारी धातुओं के सोखने की एक सस्ती तकनीक की व्यापक जांच की गई है।
भारी घातुओं के सेवन से कई रोगों का खतरा
अत्यधिक मात्रा में कॉपर के सेवन से सिरदर्द, बुखार, रक्तगुल्म, दस्त, पेट में ऐंठन, केसर-फ्लेशर रिंग्स और पीलिया हो जाता है। निकेल के कारण जिल्द की सूजन, फेफड़ों के कैंसर, तंत्रिका संबंधी समस्या, हृदय रोग, गुर्दे और यकृत में समस्या हो सकती है।