वाराणसी। भारत विभाजन विभीषिका दिवस पर रविवार को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में राष्ट्रीय सेवा योजना एवं पं. दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ की ओर से वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इसका विषय “क्या भारत विभाजन दिवस अनिवार्य था” रहा।
इस विषय के पक्ष और विपक्ष में क्रमशः अभिनव तथा निखिल ने विचार रखे। इसके पहले अतिथियों का स्वागत करते हुए पं. दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ एवं राष्ट्रीय स्वयं योजना के समन्वयक डॉ. केके सिंह ने कहा कि भारत को स्वतंत्रता की मिठास के साथ-साथ देश को विभाजन का आघात भी सहना पड़ा। नए स्वतंत्र भारतीय राष्ट्र का जन्म विभाजन के हिंसक दर्द के साथ हुआ, जिसने लाखों भारतीयों पर पीड़ा के स्थायी निशान छोड़ दिए।
छात्र कल्याण संकाय के सहायक संकायाध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार तिवारी ने कहा कि विभाजन मानव इतिहास में सबसे बड़े विस्थापनों में से एक है, जिससे लगभग 20 मिलियन लोग प्रभावित हुए। कार्यक्रम का संचालन पं. दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के सह समन्वयक डॉ. पारिजात सौरभ ने किया। शोध पीठ की सह -समन्वयक डॉ. उर्जस्विता सिंह ने कहा कि 14-15 अगस्त, 2022 की आधी रात को पूरा देश 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा होगा, लेकिन इसके साथ ही विभाजन का दर्द और हिंसा भी देश की स्मृति में गहराई से अंकित है। कार्यक्रम में डॉ. किरण सिंह, डॉ. सतीश कुशवाहा, डॉ. निशा सिंह, डॉ. नंदिनी सिंह, डॉ. अनीता, डॉ. दुर्गेश कुमार उपाध्याय, डॉ. मुकेश कुमार पंथ, डॉ. कुंदन सिंह, डॉ नलिनी श्याम कामिल, डॉ. नीरज धनकड़, डॉ. राहुल गुप्ता व बड़ी संख्या में स्वयंसेवक स्वयं सेविकाएं उपस्थित रहीं।
विस्थापन का दर्द इसे झेलने वाला ही समझ सकता है

वाणिज्य एवं प्रबंध शास्त्र अध्ययन संकाय मे विभाजन की विभीषिका विषय पर संगोष्ठी हुई, जिसमें वाणिज्य एवं प्रबंध शास्त्र के अध्यापक एवं छात्र सम्मिलित हुए। संकाय अध्यक्ष अशोक कुमार मिश्र ने कहा कि विस्थापन का दर्द वही समझ सकता है, जिसने उसे झेला है। भारत की आजादी के समय जो लोग पाकिस्तान से भारत आए, उन्होंने विभिन्न प्रकार के कष्ट सहे। बहुत से लोगों की जानें गई, कई परिवार बिछड़ गए, उनकी संपत्तियां छीन ली गईं। विस्थापन का दूसरा दर्द कश्मीर के लोगों ने सहा, जब वहां पर आतंकवाद के कारण कश्मीरी पंडितों को अपना घर एवं बसी बसाई जिंदगी छोड़ कर घाटी से बाहर आना पड़ा। आज तक विस्थापन का दर्द इन सभी परिवारों में है। विभागाध्यक्ष प्रो. क एस जायसवाल ने कहा कि भारत अगर विभाजित नहीं हुआ होता तो आज ज़्यादा शक्तिशाली राष्ट्र होता। प्रो. सुधीर कुमार शुक्ल ने कहा कि हमें विभाजन की विभीषिका से सीख लेने को आवश्यकता है। प्रो. अजीत कुमार शुक्ल ने भारत के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर भारत की स्वाधीनता तक के इतिहास के बारे में बताया। प्रो. केके अग्रवाल, डॉ. धनंजय विश्वकर्मा, आयुष कुमार एवं प्रबंध शास्त्र अध्ययन संस्थान के समस्त अध्यापक उपस्थित रहे।