वाराणसी। आज भी समाज में बहुत सुधार की आवश्यकता है। हमारे राष्ट्रीय आंदोलन में पत्रकारिता के कई चुनौतियां थीं। यह बात महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने शनिवार को कही।
प्रो. वासुदेव सिंह स्मृति न्यास एवं महामना मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में केंद्रीय पुस्तकालय स्थित समिति कक्ष में “भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में साहित्य और पत्रकारिता के योगदान” विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन शनिवार को प्रो. सिंह ने कहा कि हिन्दी भाषा देश के हर कोने में ग्राह्य है। देश का कोई भी कोना हो, वहां हिंदी बोली पढ़ी और समझी जाती है। इसलिए हमें भाषा के परिष्कार और उसके रहस्य के अपवाद पर ध्यान देना चाहिए।
मुख्य वक्ता डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि उस दौर में एक खबर हिन्दी प्रदीप को सरकार के खिलाफ लिखने पर 3000 रुपए का जुर्माना हुआ। वहीं बनारस से प्रकाशित आज अखबार ने भी अपने जीवन में कई उतार चढ़ाव देखे। आज के संपादक पराड़कर जी को कई बार जेल जाना पड़ा। प्रेमचंद ने भी आर्थिक कारण से ही हंस को बंद कर दिया। लेकिन उन्होंने 200 रुपए घाटे पर भी जागरण अखबार का प्रकाशन किया। 1947 में आजादी के समय की स्थिति विकट थी।
डॉ. विनोद सिंह ने जेम्स अगस्टस हिक्की की पत्रकारिता से लेकर भारतेंदु जी की पत्रकारिता का जिक्र किया। भारतेंदु का काल गद्य निर्माण का काल कहलाता है। उन चुनौतियों के बीच साहित्य और पत्रकारिता को संरक्षण देने का काम भारतेंदु जी ने किया। उन्होंने पत्रकारिता की चुनौतियों में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को साधा।
डॉ. अरुण कुमार शर्मा ने कहा कि आज तो मीडिया में फेक न्यूज ज्यादा छप रही है। यह पत्रकारिता की ग्रीन जर्नलिज्म है। इस फेक न्यूज से लड़ना ही हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। आज विज्ञापन का दौर है जिसकी वजह से पैड न्यूज की चुनौतियां भी बढ़ी हैं। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से डॉ. नवीन चंद लोहानी वर्चुअल रूप से जुड़े और उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन के समय भारतीय पत्रकारिता की चुनौती पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी के दूसरे सत्र में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन हाशिए के सिपाही विषय पर प्रमुख विद्वानों ने वक्तव्य दिया। शोधार्थियों ने भी अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। इस सत्र के अध्यक्ष डॉ. श्रद्धा नंद ने प्रो. वासुदेव सिंह को याद करते हुए कहा कि गुरु जी इतिहास के मर्मज्ञ थे, इतिहास पढ़ाना सबके बूते की बात नहीं। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में साहित्य की उपस्थिति होनी चाहिए। उन्होंने हाशिये के सिपाहियों से आग्रह किया कि हमारे पास पराड़कर जी का साहित्य ही नहीं है, हमें उनके साहित्य पर शोध की आवश्यकता है। प्रो. गायत्री सिंह, प्रो. गायत्री माहेश्वरी, नीरज कुमार सिंह, पूजा, सीमा तिवारी आदि ने भी विचार रखे।
अंत में प्रो. वासुदेव सिंह जी की तस्वीर पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के पश्चात समापन सत्र की शुरुआत हुई। इस सत्र के अध्यक्ष डॉ. आनंद वर्धन ने रुद्र काशिकेय की पुस्तक बहती गंगा का जिक्र किया। साथ ही उन्होंने मेरठ से प्रकाशित प्रताप और बनारस से प्रकाशित भूमिगत अखबार रणभेरी का भी जिक्र किया और पत्रकार, पत्रकारिता की चुनौतियों पर प्रकाश डाला।
समापन सत्र के अध्यक्ष डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह ने बहती गंगा, चंद्र शेखर आजाद, विश्वनाथ शर्मा आदि लोगों का जिक्र करते हुए कहा कि जिस प्रकार काशी को नहीं बांधा जा सकता उसी प्रकार प्रो. वासुदेव सिंह को भी किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता। कार्यक्रम का संचालन प्रो. श्रद्धा और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. हिमांशु शेखर सिंह ने किया। इस मौके पर शोध छात्र देवी प्रसाद तिवारी, पूजा चौधरी समेत अन्य लोग मौजूद रहे।