वाराणसी। कहानी की भाषा सहज होनी चाहिए, जो आम लोगों को समझ में आये। हमें बचपन से ही सिखाया जाता है कि भाषा थोड़ी गम्भीर होनी चाहिए, जबकि हमें प्रेमचंद जी से सीखना चाहिए।
ये बातें एनसीईआरटी तथा काशी विद्यापीठ द्वारा नव शिक्षा अभियान पर पांच दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन मंगलवार को एनसीईआरटी की भाषा विभाग की प्रो. संध्या सिंह ने कहानी की विशेषताओं पर कहीं। उन्होंने कहानी के पात्रों के चयन और नामकरण के संदर्भ में कहा कि यह भारत के हर वर्ग से लिया जाना चाहिए। सभी धर्म-सम्प्रदाय के मिलेजुले नाम हों तो, हर व्यक्ति अपना प्रतिनिधित्व देखता है। आप सभी बनारस का होने के नाते नार्थ-ईस्ट के लोगों को ले सकते हैं। अक्सर कहानी में पात्र का परिवेश ही उसके नाम का निर्धारण करता है, लेकिन अब कहानियों में बहुत परिवर्तन आ गया है।
उन्होंने कहा कि गांव में रहने वाला बच्चा भी सूर्यप्रताप हो सकता है। गांव में भी किसी का नाम शेक्सपियर हो सकता है। इसलिए गांव की कहानी में भी ये नाम हो सकते हैं और होने भी चाहिए। इसमें प्रयोग देखने को मिल रहे हैं। नामकरण से लहजे में, टोन में फर्क आयेगा। यदि भाषा भोजपुरी हो तो कैसे बुलायेंगे। कहानी की शुरुआत थोड़ी सस्पेंस के साथ होनी चाहिए, एकदम फ्लैट नहीं। कहानी की विषयवस्तु कुछ भी हो सकती है। घर की समस्या को भी ले सकते हैं, दादी-नानी के किस्से भी हो सकते हैं। कहानीकार के दिमाग में केवल कथानक होता है बाकी कल्पना होती है लेकिन वह भी सच होती है।
प्रो. संध्या ने कहा कि कहानी में वही शब्द इस्तेमाल किये जाने चाहिए जो दिमाग में आते हैं, जिससे जिज्ञासा उत्पन्न हो। वह एक निबंध की तरह न लगे। शब्दों के दोहराव से बचने के लिए कहानी को कई बार पढ़ना चाहिए। कहानी के लिए भाषा के माध्यम से भाव को व्यक्त करना पड़ता है। जो हम देखते हैं। जैसे एक नायक हैं जो कपड़े की दुकान पर काम करता है। उसे अपनी प्रेमिका से पहली बार मिलने जाना है लेकिन उसके पास भाषा नहीं है जिससे वह अपने भाव को व्यक्त कर सके। प्रेमिका उससे पहली बार जब मिलती है तो खुलकर हंसती है तो वह बोलता है कि तुम जब हंसती हो तो लगता है कपड़े का थान खुल रहा है। यहां मुख्य यह है कि ज्ञान कंस्ट्रक्ट किया जाता है, निर्माण किया जाता है। यह एक दूसरे से मिलने पर ही हो पाता है। तात्पर्य यह है कि मन में जो विचार बैठे उसे निकलना चाहिए।
काशी विद्यापीठ के प्रो निरंजन सहाय, प्रो. अनुराग कुमार तथा एनसीईआरटी की डॉ. यासमीन अशरफ, याचना गुप्ता ने कहानी की बारीकियों पर बात की।
कार्यशाला में डॉ. पारिजात सौरभ, डॉ. रामाश्रय, डॉ. सीमांत प्रियदर्शी, रीतिका मेहरा, हरिभूषण आदि ने एनसीईआरटी द्वारा चयनित विषयों पर अपनी कहानी का वाचन किया, जो साक्षरता मिशन, ग्राहक जागरूकता अभियान, बैंकिंग जागरूकता से जुड़ी थीं।