वाराणसी। भारत में आत्महत्या के कारणों में तनाव, अवसाद जैसी समस्याओं के अलावा जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण है। इस स्थिति को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है।
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर रविवार को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में आयोजित वेबिनार में कार्यक्रम संयोजक डॉ. रश्मि सिंह ने ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि हर साल 10 सितम्बर को यह दिवस वैश्विक जागरूकता और प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने का अवसर होता है। इस साल इस दिवस की थीम “क्रिएटिंग होप थ्रू ऐक्शन” रखा गया है। अतः इस बार विश्व स्वास्थ संगठन इस बात पर जोर दे रहा है कि आत्महत्या जैसे गंभीर समस्या को रोकने के लिए एक वैश्विक एवं सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।
डॉ. रश्मि ने कहा कि समाज में कलंकित होने के भय या फिर सहायता एवं परामर्श सेवाओं के कमी के कारण भी समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है । ऐसे में चाहे हमारी भूमिका कर्मचारी की हो, शिक्षक की हो, परिवार के सदस्य की हो, छात्र की हो, मित्र की हो हम सभी को अपने अपने क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाकर आत्महत्या जैसे गंभीर समस्या को रोकने का प्रयास करना चाहिए।
कार्यक्रम की मुख्य वक्ता विद्यापीठ की समाजकार्य की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. वंदना ने कहा कि अगर हम अपने देश में इस समस्या की गंभीरता को देखें तो हमें पता चलेगा कि यह विकराल रूप ले रही है। सन 2021 में 164033 लोगों ने भारत में विभिन्न कारणों से आत्महत्या की, जो पिछले वर्ष 2020 के आंकड़े में 7.2% की वृद्धि दर्शा रही है। अतः प्रतिवर्ष इस संख्या में वृद्धि समस्या की भयावहता को दर्शाता है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 2021 में महाराष्ट्र में सर्वाधिक आत्महत्या हुई है। इसके बाद क्रमशः तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं कर्नाटक का स्थान है। पूरे आंकड़े के मुताबिक सर्वाधिक प्रतिशत दैनिक वेतनभोगियों का है जो लगभग 25% है। यदि हम महानगरों की बात करें तो दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु और मुंबई का स्थान प्रमुख है।
कार्यक्रम की दूसरी रिसोर्स पर्सन क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. प्रियंका पांडे ने कहा कि आत्महत्या की रोकथाम के लिए क्लीनिक में आने वाले किशोरों एवं व्यक्तियों की काउंसलिंग की जाती है। कारणों को ध्यान में रखते हुए एक समाज के रूप में तथा एक समाज के नागरिक के रूप में हम सब की भूमिका बढ़ जाती है। कार्यक्रम की तीसरी वक्ता लखनऊ विश्वविद्यालय की मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. अर्चना शुक्ला कहा कि इस दिशा में शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों की भूमिका सर्वाधिक अहम है। हम सभी को इस समस्या के निराकरण के लिए समाज में एक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि कोई नागरिक किसी समस्या की वजह से आत्महत्या जैसा भयानक कदम न उठा ले। कार्यक्रम के अंत में प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं संबंधी प्रश्न उत्तर सत्र का भी आयोजन किया गया जिसमें दिल्ली काउंसलिंग लाइफ स्किल ट्रेनिंग के साथ-साथ माइंडफूलनेस जैसे विषयों पर भी प्रश्न पूछे गए। कार्यक्रम का संचालन डॉ. मुकेश कुमार पंत ने किया। विषय प्रवर्तन डॉ. दुर्गेश उपाध्याय एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संतोष कुमार सिंह ने किया।