वाराणसी। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी ने कहा कि सुब्रह्मण्यम भारती ने तमिल भाषा के जरिए भारतीय राष्ट्रीय ज्ञान में विशिष्ट अवदान दिया है।
महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती की जयंती पर रविवार को विद्यापीठ में आयोजित “भारतीय भाषा के उन्नयन में महाकवि सुब्रमण्यम भारती का अवदान” विषयक वेबिनार में उन्होंने कहा कि बीज रूप मे रूप में कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा को संस्कृत सहित अन्य भारतीय भाषाओं मे अनुदित किया जाए। उन्होंने संस्कृत अन्य प्राच्य भारतीय भाषा विभाग को क्रियान्वयन का पूरा आश्वाशन दिया l
कार्यक्रम की शुरुआत नमस्कारात्मक मंगलाचरण से हुई, जिसका निर्वचन श्वेता ने किया। मुख्य अतिथि राजस्थान के भरतपुर स्थित एमएसजे राज पीजी कॉलेज के प्रो. बाबूलाल मीणा ने महाकवि सुब्रमण्यम भारती के कृतित्व एवं व्यक्तित्व के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा की। उन्होंने ने बताया कि हालांकि उनका जन्म तमिलनाडु के एत्तापुरम मे हुआ उसके बाद काशी मे आकर संगीत विद्या के मर्मज्ञ बने तथा 1905 मे काशी मे संपन्न कांग्रेस अधिवेशन मे उदगीत वंदेमातरम् राष्ट्रगीत से प्रेरित होकर अपने काव्य सृजन की धार राष्ट्र प्रेम की तरफ मोड़ दिया। उन्होंने बताया कि महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती ने लगभग 400 रचनाएं लिखी है, जिसमे अनुवाद कार्य एवं स्वरचनाएँ सम्मिलित हैं l
दूसरे वक्ता गढ़वाल स्थित हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय के प्रो. आशुतोष गुप्त ने महाकवि सुब्रमण्यम भारती द्वारा रचित “भारत का जाप करो” कविता जो राष्ट्र प्रेम से ओत- प्रोत है के साथ साथ उनके द्वारा रचित अन्य कविताओं का बहुत ही शानदार वाचन किया।
कार्यक्रम की मुख्य वक्ता विद्यापीठ के संस्कृत एवं प्राच्य भारतीय भाषा विभाग की पूर्व संकायध्यक्ष प्रो. उमा रानी त्रिपाठी वयं राष्ट्रे जागृयामः की भावना को रेखांकित करते हुए वर्तमान मे प्रक्रियारत “काशी तमिल संगम” पर दृष्टिपात करते हुए महाकवि सुब्रमण्यम भारती के भाषा एवं ज्ञान के क्षेत्र में विशेष योगदान को बताया। उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह से अल्पायु मे ही महाकवि सुब्रमण्यम भारती ने चिरायु वाले कार्यों को कर दिया। वादे वादे जायते तत्त्वबोध की छाप छोड़ते हुए उन्होंने स्वरचित कविता “अब शत्रु सब भाव मिट जायेंगे” के साथ अपनी बात समाप्त की।

अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. योगेंद्र सिंह ने महाकवि सुब्रमण्यम भारती के ऐतिहासिक पक्ष को बखूबी रखा और आपने यह भी बताया कि किस तरह से संस्कृत संगणकीय भाषा को ज्यादा समझ पाती है। इसीलिए यह भाषा वैज्ञानिकता की कोटि मे आती है।
इस कार्यक्रम में संस्कृत एवं प्राच्य भारतीय भाषा विभाग के प्रो. दान पति तिवारी, डॉ. दिनेश चंद्र शुक्ला, डॉ. उपेंद्र देव पांडे, डॉ. शमा, डॉ. शैलेश पांडे और डा. श्वेता अग्रहरी की उपस्थिति रही। प्रतिभागियों में सभी शोध-छात्र, स्नातक एवं स्नातकोत्तर के विधार्थी सम्मिलित रहे।
कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन वेबिनार की संयोजिका डॉ. अनीता ने की एवं तकनीकी सहयोग डा. बिंद कुमार, सहायक प्रो. संस्कृत, सावित्री बाई फुले राज. स्नातकोत्तर महाविद्यालय चकिया- चंदौली ने किया।
उत्तर व दक्षिण के मध्य सेतु थे महाकवि भारती – डॉ शैलेंद्र वर्मा

शिक्षा शास्त्र विभाग की ओर से महाकवि सुब्रह्मण्य भारती की जयंती का आयोजन किया गयाl विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र कुमार वर्मा ने कहा कि महाकवि भारती ने उत्तर व दक्षिण के मध्य एक सेतु का कार्य किया। महाकवि भारती ने भागवत गीता का तमिल अनुवाद कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. वीणा वादिनी ने महाकवि द्वारा अल्पायु में ही किये गए पतंजलि के सूत्रो के तमिल अनुवाद की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन डॉ. दिनेश कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रमेश प्रजापति ने किया। इस अवसर पर डॉ ज्योत्सना राय, सर्वेश कुमार, बादल सिंह, अमित मिश्र, अखिलेश प्रजापति, आदित्य, प्रद्युम्न यादव, सोनू यादव एवं राहुल प्रजापति समेत समस्त विद्यार्थियों ने कार्यक्रम मे सक्रिय प्रतिभाग किया। यह जानकारी विवि के सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी डॉ नव रतन सिंह ने दी।
अंग्रेजी विभाग के शिक्षक व छात्र, डॉ. नीरज कुमार सोनकर, डॉ. रीना चटर्जी, प्रज्ञा राय, विनय राय, हरिओम सिंह आदि ने महाकवि सुब्रमण्यम भारती की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डाला। राष्ट्र के लिए उनका योगदान अतुलनीय है। यह सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया कि एक नेक दिमाग और आत्मा कभी नहीं मरती। यह अनंत काल को प्रभावित करता है। समारोह की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो. एन.एस. कामिल ने की। इस अवसर पर एमए तृतीय सेमेस्टर के छात्र असगर खान, अंकिता झा, रागिनी यादव, अनन्या सिंह आदि मौजूद रहे।
राजनीति विज्ञान विभाग में विशेष व्याख्यान के मुख्य वक्ता विभागाध्यक्ष डॉय सूर्यभान प्रसाद ने कहा कि भारत की संस्कृति को साहित्यिक एवं भाषायी रूप से एक करने का प्रयास महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती ने किया तथा दक्षिण भारत को उत्तर भारत से जोड़ते हुए एक भारत श्रेष्ठ भारत की संकल्पना को साकार किया। वर्तमान भारत सरकार ने भी इस पहल को प्राथमिकता देते हुए काशी तमिल संगमम में उनके योगदान की सराहना की और इस विषय पर कई कार्यक्रम भी आयोजित किए। स्वागत राजनीति विज्ञान विभाग के डॉ. रेशम लाल ने किया तथा धन्यवाद डॉ. रवि प्रकाश सिंह ने किया। कार्यक्रम में डॉ. विजय कुमार, डॉ. पीयूष मणि त्रिपाठी, डॉ. जयदेव पाण्डेय, डॉ. ज्योति सिंह, श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड एजुकेशन, वाराणसी के डॉ. संजय कुमार, शोध छात्र – रवि शंकर, संजना सोनी, तेजबली, साक्षी यादव, तरुण कुमार सिंह, सहित स्नातक एवं स्नातकोत्तर के विद्यार्थी सम्मिलित हुए।
सुब्रमण्यम भारती ने तमिल समाज में भारतीयता के रंग भरे
1857 के बाद जो देश के भीतर आग थी, उसी की बानगी साहित्य में प्रस्तुत करने वाले कवि है सुब्रमण्यम भारती । उन्होंने तमिल समाज में भारतीयता के रंग को आकार दिया। जातिप्रथा उन्मूलन एवं अस्पृश्यता के सामाजिक विभेद का जब तक नाश नहीं करेंगे तबतक आजादी बहुत दूर की बात है। काशी में उन्होंने शास्त्र की शिक्षा ली तो पुदुचेरी में उन्होंने वनवासियों के बीच रहकर व्यवहारिक जीवन की शिक्षा ली। भौगोलिक एवं सामाजिक आजादी की लड़ाई उन्होंने सक्रियता के साथ लड़ी। उक्त बातें हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग एवं मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित भारतीय भाषा उत्सव एवं महाकवि सुब्रमण्यम भारती के जयंती के अवसर पर आयोजित विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता प्रो. अनुराग कुमार ने कही।अध्यक्षता कर रहे डॉ. राजमुनि ने कहा कि दक्षिण भारत का साहित्य विशिष्ट साहित्य है, संवेदना का साहित्य है । कार्यक्रम में नीतू सिंह, अंजना भारती, स्तुति राय, हनुमान आदि शोध छात्रों ने विचार रखें। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनुकूल चन्द राय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रीति ने किया। इस दौरान डॉ. रामाश्रय सिंह, डॉ. विजय रंजन, शिवशंकर यादव, आकाश, उज्ज्वल, प्रज्ञा, प्रतिभा, हेमलता मौजूद रहे।