वाराणसी। भारतीय संस्कृति का आधार संस्कृत है। यह बात महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ केशिक्षा शास्त्र विभाग की ओर से आयोजित ‘भारतीय संस्कृति और संस्कृत’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ. प्रवीण त्रिपाठी ने कही।

मुख्य वक्ता प्रो. अरविंद कुमार पांडे ने कहा कि भारतीय संस्कृति की संवाहक भाषा संस्कृत है। इसमें जैसा बोला जाता है वैसा ही लिखा जाता है। इसे योगात्मक भाषा कहते हैं। हमारी संस्कृति विश्व वार है, व्यक्ति विशेष की संस्कृति नहीं है। हमारी संस्कृति दुनिया तथा दुनिया के लोगों को जोड़ने की संस्कृति है। संस्कृति के संरक्षण में संस्कृत भाषा का बहुत बड़ा योगदान है।
विशिष्ट अतिथि शिक्षा शास्त्र विभाग केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जम्मू के डॉ. प्रवीण मणि त्रिपाठी ने कहा कि भारत का गौरव संस्कृति और संस्कृत से कायम है। संस्कृति का उत्कर्ष संस्कृत भाषा से हुआ है। संस्कार के अभाव में संस्कृति और संस्कृत का संरक्षण और संवर्धन संभव नहीं है। संस्कृति संस्कृत और संस्कार साथ साथ चलते रहते हैं। संस्कार युक्त कर्म ही संस्कृति और संस्कृत का मूल है।
अतिथियों का वाचिक स्वागत विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र वर्मा तथा विषय प्रवर्तन डॉ. राजेंद्र यादव ने किया।कार्यक्रम मे पुरातन छात्र परिषद के सदस्य डॉ. भवभूति मिश्रा, डॉ. प्रशांत, डॉ. तारकेश्वर्, डॉ. पूनम, राजेंद्र प्रसाद, डॉ. जेपी शर्मा, उम्मूल फ़ातमि, शालिनी सुधीर रंजन, विनय सिंह, धर्मेंद्र मौर्य, प्रिया उपाध्याय, मनोज यादव, दिनेश सिंह, धर्मेंद्र मौर्य, डॉ. सुरेन्द्र राम, डॉ. राखी देव, डॉ. ध्यानेंद्र मिश्र, डॉ. वीणा वादिनी, आर्यन, डॉ, अभिलाषा जायसवाल, रमेश प्रजापति समेत समस्त शिक्षक व विद्यार्थी कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। संचालन डॉ. दिनेश कुमार ने किया। यह जानकारी सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी डॉ. नवरतन सिंह ने दी।