वाराणसी। पोस्ट मास्टर जनरल वाराणसी परिक्षेत्र कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद एक अध्यापक, पत्रकार, साहित्यकार के साथ ही आदर्शोन्मुखी व्यक्तित्व के धनी थे। एक पत्रकार को कभी भी पक्षकार नहीं होना चाहिए। उसे अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के हिन्दी और भारतीय भाषा विभाग एवं महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान तथा क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र वाराणसी, संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश की ओर से शुक्रवार को “प्रेमचन्द अध्यापक और पत्रकार विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद का समाज के अंतिम व्यक्ति से विशेष अनुग्रह था और समाज की विसंगतियों पर उनकी कलम हमेशा चला करती थी।
मुख्य अतिथि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. प्रणय कृष्ण ने मुंशी प्रेमचंद के कलम का सिपाही की कुछ पंक्तियों को पढ़कर सुनाया। साथ ही एक अध्यापक और पत्रकार के रूप में प्रेमचंद की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। उन्होंने प्रेमचंद के जीवन की कुछ घटनाओं का भी जिक्र किया। बीएचयू हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. बलिराज पांडेय ने कहा कि प्रेमचंद जातिधर्म और आर्थिक विषमता की गाठो को तोड़ना चाहते थे।
संगोष्ठी में प्रो बसंत त्रिपाठी, प्रो. सुरेन्द्र प्रताप, प्रो नीरज खरे, डॉ. रविनन्दन सिंह ने विचार व्यक्त किया। मुख्यमंत्री अभ्युदय योजना के वाराणसी प्रभारी डॉ. आरएस चौहान ने कहा कि जन-जन तक प्रेमचंद पहुंचें इसके लिए यूट्यूब और फेसबुक चैनल पर इस विचार गोष्ठी का लाइव प्रसार किया जा रहा है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र के प्रभारी सुभाष चन्द्र यादव ने कहा कि प्रेमचंद न सिर्फ एक साहित्यकार बल्कि एक कुशल पत्रकार भी थे।
विषय प्रवर्तन करते हुए काशी विद्यापीठ हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. निरंजन सहाय ने कहा कि शिक्षक असाधारण होता है। प्रेमचन्द एक असाधारण शिक्षक थे। प्रेमचंद के बहुत सारे आयाम है, जिसपर प्रकाश डालने की जरूरत है। प्रेमचंद को केवल साहित्यकार ही नहीं बल्कि अध्यापक के रूप में भी उनकी जीवनी को पढ़ा जाना चाहिए। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रो. अनुराग कुमार ने कहा कि प्रेमचंद ने कभी भी अपनी लेखनी से समझौता नहीं किया। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों और समसामयिक मुद्दों को अपनी लेखनी के केन्द्र में रखा।
संगोष्ठी में डॉ. सुरेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. राजमुनि, डॉ रामाश्रय सिंह, डॉ. विजय रंजन, डॉ. अनुकुल चन्द्र राय, डॉ. केवी गौंडर, डॉ. केके सिंह, डॉ श्रीराम त्रिपाठी, डॉ. रवीन्द्र पाठक, डॉ जिनेश कुमार, शोध छात्र दीपक यादव, नन्दलाल, मनीष, जन्मेजय, हनुमान, अंकित, अभिषेक, शिवशंकर, अमित, प्रियंका, रितु, वरुणा, आयुषी तिवारी, सूरज चौबे, जया, धन्याश्री, सौम्या, अश्वनी, रोशन, शशिकांत, देवेन्द्र गिरि सहित शोध छात्र व अन्य रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रीति एवं डॉ. सुरेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. विजय रंजन ने किया।