वाराणसी। प्रो. वासुदेव सिंह स्मृति न्यास एवं महामना मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के केंद्रीय पुस्तकालय स्थित समिति कक्ष में “भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में साहित्य और पत्रकारिता के योगदान” विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिन उद्घाटन हुआ।
मुख्य अतिथि केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने कहा कि वासुदेव सिंह कबीर साहित्य के मर्मज्ञ थे। उन्होंने कहा कि वह एक दौर था जब हम लोग छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे, तब कक्षाओं में पढ़ने का अवसर कम ही मिलता था। उस समय गुरु जी हम लोगों को घर पर बुलाकर पढ़ाया करते थे। हमारे सनातन परंपरा में धर्म अर्थ काम मोक्ष की बात कही गई है, लेकिन आज के युवा केवल अर्थ चिंता और तकनीकी विषयों में ही संलिप्त हैं। हमारी मीडिया समाज में सजग है।
डॉ. पांडय ने कहा कि आजादी के दिनों में हमारे देश के पत्रकार और साहित्यकार अपने- अपने तरीके से आज़ादी के पथ पर अग्रसर थे। काशी तो पत्रकारों की थाती है। यहां पराड़कर, गर्दे, अंबिका प्रसाद वाजपेयी जैसी एक लंबी कड़ी है। उन्होंने कहा कि आज विद्यापीठ, बनारस और भारत में अपनी प्रगति का एक नया और बड़ा रूप ले रहा है।
छपरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. हरिकेश बहादुर सिंह ने कहा कि काशी साहित्य जगत की एक जीवंत उदाहरण है। विद्यापीठ आचार्य परंपरा में श्रेष्ठ व श्रेष्ठतर है। उन्होंने कहा कि हमारा समाज समरस और सममेधा होना चाहिए।
अध्यक्षता करते हुए काशी विद्यापीठ के प्रभारी कुलपति प्रो. अशोक कुमार मिश्रा ने प्रो. वासुदेव सिंह को याद करते हुए कहा कि एक पिता के लिए गौरव की बात तब होती है जब उसे उसके पुत्र के नाम से जाना जाता है। ऐसे विचार गोष्ठियों में नई पीढ़ी पुरानी पीढियों से जुड़ती हैं और उनसे परिचित होती हैं।
प्रारंभ में प्रो. अनुराग कुमार ने बीज वक्तव्य दिया। कार्यक्रम के संयोजक प्रो श्रद्धा सिंह, संरक्षक डॉ. हिमांशु शेखर सिंह और संरक्षक सचिव डॉ. नागेंद्र सिंह थे। संगोष्ठी का संचालन जितेंद्र नाथ मिश्र ने और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. श्रद्धा सिंह ने किया। इस मौके पर डॉ. शिवकुमार मिश्र, डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह, डॉ. नीरज खरे समेत अन्य लोग मौजूद थे।