वाराणसी। भारतेंदु हरिश्चंद्र हिन्दी में खड़ी बोली के जनक और भारतीय नवजागरण के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने भारतीय नवजागरण काल में अपनी साहित्यिक भूमिका का निर्वहन करते हुए अनेक ऐसी पत्रिकाओं, समाचार पत्रों जैसे , कवि वचन सुधा, बाल प्रबोधिनी, हरिश्चंद्र का इत्यादि का प्रकाशन किया।

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में महिला सशक्तिकरण प्रकोष्ठ की ओर से शुक्रवार को भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में ये बातें मुख्य अतिथि साहित्यकार डॉ. रामसुधार सिंह ने कही। गोष्ठी का विषय “भारतेंदु हरिश्चंद्र का योगदान” रहा। डॉ. सिंह ने कहा कि भारतेंदु ने भाषा के क्षेत्र में प्राचीनता एवं आधुनिकता को साथ लेकर एक नई दिशा निर्धारित की और भाषा के स्वरूप को स्थापित करने के साथ ही साथ एक विशाल लेखक मंडली का निर्माण भी किया। वह हिंदी साहित्य के क्षेत्र में पहली यात्रा कथा की रचना करने वाले व्यक्ति थे। आधुनिक साहित्य की समस्त विधाओं नाटक, निबंध इत्यादि के साथ-साथ परियों इत्यादि की और इन सब की रचना में उन्होंने हंसती एवं हिंदी रलजती भाषा का प्रयोग किया।
डॉ. सिंह ने बताया भारतेंदु हरिश्चंद्र एक ऐसे पारस थे, जो भी उनके संसर्ग मे आया वह समृद्धि व संपन्न हो गया। भारतीय नवजागरण के काल में जब हिंदी भाषा के क्षेत्र में विभिन्न विचारधाराओं का परस्पर संघर्ष चल रहा था। ऐसे में उन्होंने मध्यम मार्ग अपनाते हुए हिंदी के पक्षधर के रूप में अपनी भूमिका का बड़ी ही कुशलता पूर्वक निर्वहन करते हुए उसे शिखर पर स्थापित किया। साहित्य के साथ-साथ उनकी रचनाएं इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं कि वह भारतीय सामाजिक पृष्ठभूमि के प्रति पूर्ण सचेत थे और आवश्यकता पड़ने पर समाज में व्याप्त बुराइयों के प्रति अपने विचारों को व्यक्त करने और उनके उन्मूलन के प्रयासों में जरा सी भी कोताही नहीं बरती।
कार्यक्रम में महिला सशक्तिकरण प्रकोष्ठ के सदस्य डॉ. नीरज धनकड़, डॉ. किरन सिंह, डॉ. विजय कुमार रंजन, डॉ. ममता सिंह के अतिरिक्त विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के शिक्षक डॉ. सिद्धार्थ, डॉ. विवेक, डॉ. धीरेंद्र, डॉ. मल्लिका उपस्थिति रहीं। कार्यक्रम का संचालन मानविकी संकाय के छात्र हरि नारायण ने किया।अतिथियों का स्वागत महिला सशक्तिकरण प्रकोष्ठ के सदस्य डॉ. नीरज धनकर तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विजय कुमार रंजन ने किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ|