वाराणसी। सिडबी एवं स्पिक मैके की ओर से महात्मा काशी विद्यापीठ के मंच कला विभाग में बनारस घराने के शास्त्रीय गायक पं. भोला नाथ मिश्र क़ी छः दिवसीय कार्यशाला में पांचवे दिन शुक्रवार को छात्र छात्राओं को पूर्व के रागों भैरव, जौनपुरी, रागेश्री, खमाज की पुनरावृति कराते हुए राग यमन का अभ्यास कराया गया। तीनताल मध्यलय मे निबद्ध बंदिश “सखी जाने न देत मग रोके ठाढ़” के बाद मे तीनताल द्रुतलय मे निबद्ध बंदिश “गाओ गाओ मंगल गावत बधाई”, की प्रस्तुति की।
राग बिहाग में तीनताल में निबद्ध बंदिश “प्यारी प्यारी अखियाँ राधे की सखी ” के स्थायी और अंतरा तथा अंत में ताल दीपचंदी मे चैती”चईत मासे बोले रे कोयलिया हो रामा” का अभ्यास कराया।
पं. मिश्र ने विद्यार्थियों को बताया कि संगीत गायन में उपशास्त्रीय गायन मे ठुमरी, चैती की गायकी भी आसान नही है। इसके लिए विभिन्न रागों की जानकारी होना अतिआवश्यक है। तभी ठुमरी प्रभावशाली और मधुर होगी। बिना रियाज के शास्त्रीय संगीत की कोई भी विधा संभव नही है। एक समर्थ कलाकार बनने के लिए बीस से पच्चीस साल की संगीत साधना अत्यंत आवश्यक है तभी आप एक अच्छे शिक्षक भी बन सकते है।
कार्यशाला में तबले पर आनंद मिश्रा, हारमोनियम पर शिवम मिश्रा तथा तानपुरा पर श्वेता दूबे ने संगत की। स्वागत मंचकला विभागाध्यक्ष डॉ. संगीता घोष एवं संचालन डॉ.आकांक्षी ने किया। उक्त अवसर पर मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो.योगेंद्र सिंह, पत्रकारिता के डॉ. विनोद सिंह एवं स्पिक मैके की चेयरपर्सन यूसी सेठ, पवन सिंह उपस्थित थे।