आर. संजय
टी-20 विश्व कप से भारतीय टीम की जिस अंदाज में विदाई हुई, उसपर अभी बवाल लंबे समय तक चलता रहेगा। कई सवाल उठेंगे। कुछ के जैसे-तैसे जवाब मिलेंगे तो कुछ ठंडे बस्ते में चले जाएंगे। अगला विश्व कप आ जाएगा और हम फिर चुने गए खिलाड़ियों पर “हर हाल में जीतकर आओ” का दबाव डालना शुरू कर देंगे।
भारत संभवतः क्रिकेट के इतिहास में इकलौता देश होगा, जिसकी दो सीनियर टीमें एक ही समय में अलग-अलग देशों के साथ एक दिवसीय और टी-20 अंतरराष्ट्रीय सीरीज खेलती रही हैं। इन टीमों में जो खिलाड़ी रखे जाते हैं, उन्हें माना जाता है कि वे देश सर्वश्रेष्ठ हैं। इनका चयन उनके प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है। पहले राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के जरिए खिलाड़ियों को राष्ट्रीय टीम में खेलने का मौका मिलता था। हाल के वर्षों में भारतीय टीम में चयन का सबसे बड़ा आधार आईपीएल बन चुका है।
अब मूल बात पर आते हुए यह जिक्र जरूरी है कि जब भारत ने 1983 का विश्व कप जीता था तो टीम में स्टारडम के नाम पर सुनील गावसकर और कपिलदेव ही थे। तब किसी को उम्मीद नहीं थी कि भारत सेमीफाइनल तक भी पहुंच सकेगा, क्योंकि इसके पहले के दो विश्व कप में भारत सिर्फ एक मैच ही जीत पाया था। खैर, भारत ने विश्व कप जीता और क्रिकेट के बुखार ने पूरे देश को चपेट में ले लिया। इतना ही नहीं 1985 में ऑस्ट्रेलिया में विश्व चैंपियनशिप की जीत ने इसमें और तड़का लगा दिया। इसके बाद तो हम मान बैठे कि हम दुनिया में सबसे अच्छे हैं।
जब स्टेडियम में फेकी गईं बोतलें
फिर शुरू हुआ टीम के लिए हर बड़ी प्रतियोगिता में दुआओं और जीत के अति विश्वास का दौर। 1992 के बाद 1996 में सेमीफाइनल में जब टीम श्रीलंका से पराजित हुई तो इडन गार्डन्स में गुस्साए दर्शकों ने मैदान पर बोतलें और अन्य सामान फेकने शुरू कर दिए थे। यहां से उस युग की शुरुआत हुई “हमारी टीम को हर हाल में जीतना है।”
लग गए थे कपिल और इमरान के कटआउट
थोड़ा इसके पहले चलें तो 1987 में पहली बार भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका की संयुक्त मेजबानी में हुए एक दिवसीय विश्व कप में यह अति विश्वास सिर चढ़कर बोलने लगा था। इस प्रतियोगिता का फाइनल कोलकाता के इडन गार्डेन में खेला जाना था। भारत और पाकिस्तान के अलावा इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया सेमीफाइनल में थे। भारत का मुकाबला इंग्लैंड और पाकिस्तान का ऑस्ट्रेलिया से होना था। सेमीफाइनल मैच के पहले ही लोग तय कर बैठे के भारत और पाकिस्तान के बीच फाइनल खेला जायेगा और कोलकाता में कपिलदेव और इमरान खान के बड़े-बड़े कटआउट लगा दिये गये। तोरण द्वार भी बनाए गए, लेकिन ये दोनों ही टीमें सेमीफाइनल में हार गईं। 1983 के बाद भारत 2003 में फाइनल तक पहुंचा और ऑस्ट्रेलिया से हार गया।
खराब दौर के बाद फिर शुरू हुआ नया युग
वर्ष 2007 का एक दिवसीय विश्व कप शायद ही कोई याद रखना चाहेगा, जब टीम इंडिया लीग दौर में ही बाहर हो गई थी। हालांकि भारतीय प्रशंसकों के लिए थोड़ी राहत की बात यह थी कि पाकिस्तान का भी यही हाल हुआ था। उसी साल पहला टी-20 विश्व कप खेला गया और फाइनल में भारत ने पाकिस्तान को हराकर खिताब जीत लिया। इसके बाद भारत का क्रिकेट जगत में सुनहरा युग शुरू हुआ और “हर हाल में जीतकर आओ” फिर शुरू हो गया। यह दीगर है कि अगले कुछ वर्ष महेंद्र सिंह धौनी की अगुवाई वाली टीम इसके दबाव में नहीं आई और विश्व कप भी जीता। अब फिर इसके बाद लगातार पराजयों के बावजूद यह मंत्र इस विश्व कप तक चलता रहा। इसका भयावह नतीजा हम देख चुके हैं।