आर. संजय
एशिया कप क्रिकेट प्रतियोगिता के सुपर-4 मुकाबले में दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में मंगलवार को रविवार के मैच का रीप्ले हुआ। फर्क सिर्फ यह कि इस बार पाकिस्तान नहीं, बल्कि श्रीलंका था। नतीजा वही और बिल्कुल उसी तरह। अक्सर ऐसा होता है, जब एक जैसी परिस्थितयां दोबारा हों और पहली बार असफलता मिल चुकी हो तो “प्लान बी” पर काम किया जाता है। यानी जो प्रक्रिया पहली बार अपनाई गई, उसके इतर दूसरी प्रक्रिया अपनाई जाय। पर, श्रीलंका के खिलाफ मैच में या तो “प्लान बी” था ही नहीं, या इसका इस्तेमाल नहीं किया गया। यह विफल भी हो सकता था, पर समय की यही मांग थी। शायद कामयाब हो जाते।
कप्तान रोहित शर्मा ने भले ही मैच के बाद अपने फैसलों का बचाव किया हो, लेकिन यह साफ दिखा कि उनसे दूसरी बार चूक हुई। अनुभवी गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार लगातार दूसरी बार दबाव में टूटे और यह कप्तान की असफलता मानी जाएगी। इस टूर्नामेंट में अबतक यह स्पष्ट हो चुका है कि पिचें स्पिनरों के मुफीद हैं और खासकर अंतिम ओवरों में स्पिनरों ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया है। ऐसी स्थिति में इस टूर्नामेंट में पहली बार खेल रहे रविचंद्रन अश्विन का श्रीलंका के खिलाफ बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता था।
ऐसे हो सकता था “प्लान बी” पर काम
अश्विन या युज्वेंद्रा चहल में से किसी एक को अंतिम ओवरों के लिए बचाकर रखा जा सकता था। इसके अलावा 15वें ओवर के बाद ऑफ स्पिन करने वाले दीपक हुड्डा भी बेहतर विकल्प साबित हो सकते थे। भुवनेश्वर ने अपने पहले तीन ओवरों में 16 रन दिए थे, इसलिए उनका स्पेल पूरा कराकर श्रीलंका पर पहले ही दबाव बनाया जा सकता था। इससे बाद में स्पिनर बेहतर कर लेते। खासतौर पर अश्विन, जिन्हें इन परिस्थितियों में गेंदबाजी करने का अनुभव है और वह जल्दी दबाव में आते नहीं दिखते। अंतिम पांच में से तीन ओवर स्पिनरों से और दो ओवर पांड्या और अर्शदीप से कराए जा सकते थे।
अर्शदीप ने दूसरी बार पास कर ली अग्नि परीक्षा
अर्शदीप सिंह युवा हैं और उन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय करियर इसी साल शुरू किया है। इसके बावजूद उन्होंने एशिया की दो बड़ी टीमों के खिलाफ भीषण दबाव के क्षणों में दो बार अग्नि परीक्षा पास की। यह महज संयोग ही रहा कि उन्हें पाकिस्तान और श्रीलंका दोनों के खिलाफ अंतिम ओवर मिला और दोनों ही बार विपक्षी टीम को सात रन बनाने थे। यह दीगर है कि अर्शदीप हार नहीं बचा सके, लेकिन सात रन बनाने में दोनों टीमों के नाकों चने चबवा दिये। काश भुवनेश्वर ने भी अर्शदीप की तरह अंतिम ओवरों में गेंद यॉर्कर लेंग्थ पर डाली होती तो आज नजारा कुछ और ही होता।