आर. संजय
भारतीय क्रिकेट टीम पिछले एक साल से विवादों में बुरी तरह घिर गई है। दो टी-20 विश्व कप में पाकिस्तान और इंग्लैंड के हाथों 10 विकेट से मिली करारी हार ने इसमें और तड़का लगा दिया है। खासतौर पर कप्तानी और टीम चयन पर बेतरह सवाल उठ रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में हुए टी-20 विश्व कप के सेमीफाइनल में गले न उतरने वाली पराजय का खामियाजा चयन समिति को भुगतना पड़ा। रणनीति के मुद्दे पर कोच राहुल द्रविड़ भी निशाने पर दिख रहे हैं।
विश्व कप के बाद अब न्यूजीलैंड में खेली गई टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैचों की सीरीज में भी टीम चयन पर सवाल खड़े होने लगे हैं। इसी बीच इस दौरे पर कप्तान रहे हार्दिक पांड्या ने कह दिया कि जो खिलाड़ी रणनीति में फिट बैठेगा, वही टीम में खेलेगा। हम अपने तरीके की टीम चाहते हैं। मैं और कोच जो सही समझते हैं, वही करेंगे। इस दौरे पर कुछ खिलाड़ियों को अंतिम एकादश में स्थान नहीं देने पर टीम प्रबंधन की आलोचना हो रही है।
टीम के सामने बड़ा इम्तिहान अब अगले साल भारत में होने वाला एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय विश्वकप टूर्नामेंट है। हालांकि दुनिया की सबसे बड़ी टी-20 फ्रेंचाइजी लीग आईपीएल सामने है, लेकिन अब थोड़ा समय टी-20 से ध्यान हटाने का भी है। 2011 में अपने घर में एक दिनी विश्वकप जीतने के बाद बड़ी प्रतियोगिताओं में सफल नहीं हो पाया है। इसके ऊपर से अब टीम को लेकर विवादों ने हालात और बिगाड़ दिए हैं।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को अगर साख बचाए रखनी है तो प्रदर्शन के साथ ही उम्र के आधार पर भी विभिन्न प्रारूपों के लिए खिलाड़ी और कप्तान चुनने होंगे। खासकर टी-20 के लिए ऐसे खिलाड़ियों को सामने लाना होगा, जो अगले 10-12 साल तक स्थायी तौर पर टीम में जगह बना सकें। चार-पांच साल टी-20 के बाद इन्हें एक दिनी और टेस्ट टीम के लिए रखा जा सकता है।
टीम की सफलता के लिए कुछ नए प्रयोग किये जा सकते हैं। टी-20 क्रिकेट में अनुभव के लिए अधिक जगह नहीं होती, क्योंकि मैदान पर उतरने के साथ ही बल्ला घुमाना होता है। इसके लिए 17 से 25 साल की उम्र तक के खिलाड़ी काफी मुफीद साबित हो सकते हैं। 25 के बाद इन्हें एक दिवसीय और टेस्ट क्रिकेट में ही शामिल करें और टी-20 के लिए नई खेप लाई जाय।