आर. संजय
भारतीय क्रिकेट में घोर निराशा की स्थिति पहली बार नहीं है। यह थोड़े बहुत अंतर के साथ आज वहीं खड़ा है, जहां आज से 15 साल पहले 2007 में खड़ा था। उस समय एक दिवसीय विश्व कप में पहले दौर से बाहर हो जाने के बाद टीम के तीन दिग्गजों ने टी-20 विश्व कप की टीम से अपना नाम स्वतः वापस ले लिया था, जो ओडीआई विश्व कप के तुरंत बाद होने वाला था। ये तीन दिग्गज सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ थे। हालांकि फॉर्म के हिसाब से इनमें कोई दिक्कत नहीं थी, फिर भी खेल के सबसे छोटे प्रारूप में युवाओं को मौका देने के लिहाज से इन तीनों ने यह बड़ा फैसला किया था।
कुछ ऐसी ही स्थिति पिछले साल हुए टी-20 विश्व कप के बाद भी आई, जब पाकिस्तान के हाथों 10 विकेट की हार ने भारतीय क्रिकेट को झकझोर दिया। तब विराट कोहली को टी-20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कप्तानी से हाथ धोना पड़ गया। बाद में वह सभी प्रारूपों की कप्तानी गंवा बैठे। कप्तान बदल देने के बाद इस विश्व कप में भी यही हाल हुआ। अब फिर कप्तान बदलने की बात हो रही है। सवाल यही है कि क्या सिर्फ कप्तान बदल देने से सब सही हो जाएगा।
हम याद करें, जब 2007 के विश्व कप के बाद भारत ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था। टेस्ट सीरीज के बाद एक दिनी मैचों की त्रिकोणीय शृंखला खेली जानी थी। इसके लिए महेंद्र सिंह धौनी कप्तान बनाए गए थे। धौनी ने टीम में अहम बदलाव किये और सीनियर खिलाड़ियों के स्थान पर ऐसे युवा खिलाड़ी शामिल किए जो बल्लेबाजी और गेंदबाजी के साथ ही फील्डिंग में भी तेज तर्रार थे। उस समय धौनी ने फील्डिंग पर ज्यादा जोर दिया था। इसका नतीजा भी मिला। भारत ने न सिर्फ त्रिकोणीय शृंखला जीती, बल्कि अगले एक दशक तक क्रिकेट पर एकछत्र राज भी किया। इस दौरान एक दिनी विश्व कप और चैंपियन्स ट्रॉफी भी जीती।
ऊपरी क्रम में बाएं हाथ का बल्लेबाज जरूरी
टीम में इस समय ऊपरी क्रम में बाएं हाथ के बल्लेबाज की कमी सबसे ज्यादा खलने वाली है। दाएं और बाएं हाथ के बल्लेबाज का संयोजन विपक्षी गेंदबाजों के लिए हमेशा सिरदर्द साबित होता है। यह अच्छी बात है कि भारत के पास ऐसे बाएं हाथ के युवा बल्लेबाज हैं, बस इनका सही इस्तेमाल करने की जरूरत है।