नागपुर। हार और जीत खेल के दो पहलू हैं। अगर कोई टीम लगातार हार रही होती है तो उसकी क्षमताओं पर सवाल उठने लगते हैं। पर, दुनिया की नंबर एक टीम अगर एक ही तरीके से लगातार मैचों में पराजय को गले लगाए तो यह निश्चित तौर पर बड़ी चिंता का विषय है। खासकर तब जब बचाव करने के लिए अच्छा लक्ष्य हो और डेथ ओवरों (पारी के अंतिम ओवरों) में भी टीम तकनीकी तौर पर बढ़त लिए हुए हो।
इसको हम इस तरह से समझें कि मोहाली में ऑस्ट्रेलिया को भारत के खिलाफ मैच जीतने के लिए 120 गेंदों पर 209 रन बनाने थे। सलामी बल्लेबाज कप्तान आरोन फिंच और कैमरन ग्रीन ने विस्फोटक शुरुआत की। हालांकि इस दौरान ग्रीन दो बार भाग्यशाली रहे कि पैवेलियन लौटने से बच गए। एक तो उनका कैच छूटा और इसके पहले भारतीयों ने पगबाधा की अपील खारिज होने पर डीआरएस नहीं लिया।
इसके बावजूद ऑस्ट्रिलिया को अंतिम 24 गेंदों पर जीत के लिए 55 रनों की जरूरत थी। भारतीय गेंदबाजों को सिर्फ सही लाइन और लेंग्थ पर गेंदें फेकनी थीं। भुवनेश्वर कुमार, युज्वेंद्रा चहल, हर्षल पटेल जैसे गेंदबाज ऐसा करने में सक्षम हैं और पहले कर भी चुके हैं। लेकिन, एक जैसी परिस्थिति में लगातार पराजय ने इस मैच में भी भारतीय गेंदबाजों की मनःस्थिति पर विपरीत असर डाला और ऑस्ट्रेलिया ने चार गेंदें बचाकर लक्ष्य पार कर लिया।
यह तयशुदा है कि चयनकर्ताओं ने जिन खिलाड़ियों को चुनकर दिया है, उनसे ही मैच जीतने की कोशिश करनी होगी। किस खिलाड़ी का किस जगह कैसे इस्तेमाल करना है, यह मैदान पर कप्तान की रणनीति पर निर्भर करता है। सीमित विकल्पों की स्थिति में कप्तान के लिए रणनीति को सही तरीके से लागू करना और कठिन हो जाता है। इसके बावजूद अगर टीम जीत जाती है तो सारे गिले-शिकवे खत्म हो जाते हैं और रणनीति कारगर मानी जाती है। अगर विकल्प मौजूद हों और रणनीति विफल हो जाय तो जवाबदेही तो बनती ही है।
पिछले मैच में अगर भारतीय गेंदबाजों के नाम गिनें तो ये भुवनेश्वर कुमार, उमेश यादव, अक्षर पटेल, हर्षल पटेल, युज्वेंद्रा चहल और हार्दिक पांड्या हैं। इन सभी को टी-20 क्रिकेट का स्पेशलिस्ट माना जाता है। एक नजर इनके गेंदबाजी औसत पर डालें तो भुवनेश्वर ने 13.00, उमेश यादव ने 13.50, युज्वेंद्र चहल ने 12.60, हर्षल पटेल ने 12.25, और हार्दिक पांड्या ने 11.00 की औसत से गेंदबाजी की। इनमें सिर्फ अक्षर पटेल अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय कर सके, जिन्होंने चार ओवरों में 17 रन देकर तीन विकेट लिए और उनका गेंदबाजी औसत महज 4.25 रहा। यह अंतर अपने आप में काफी कुछ कहता है। विकल्प थे, पर कामयाबी की राह पर दौड़ नहीं सके।
अब कुल मिलाकर हालात यह बनते हैं कि “डेथ ओवरों” में भारतीय गेंदबाजी “डेड” होती जा रही है। टीम प्रबंधन को इसपर गौर करना होगा और ऐसी रणनीति तैयार करनी होगी, जो ऐसे हालात से टीम को उबार सके।