वाराणसी आर. संजय
जिस तरह अप्रत्याशित तरीके से रवींद्र जडेजा को इस साल आईपीएल सत्र के लिए चेन्नई सुपर किंग्स का कप्तान बनाया गया, उसी अप्रत्याशित तरीके से उन्होंने कप्तानी छोड़ भी दी। चेन्नई के पहले मैच से ही जडेजा की कप्तानी पर चर्चा शुरू हो गई थी। लगातार पराजयों ने इस शानदार ऑलराउंडर की क्षमताओं पर भी सवाल खड़े किए।
2009 में अपना अंतरराष्ट्रीय करियर शुरू करने वाले जडेजा ने शुरुआती दिनों में कई उतार-चढ़ाव देखे थे। बाद में उन्होंने एक विश्वस्तरीय ऑलराउंडर के रूप में भारतीय टीम में अपनी जगह तय कर ली। मध्यक्रम में उपयोगी बल्लेबाजी के साथ ही बाएं हाथ की स्पिन गेंदबाजी में उन्होंने अपनी पहचान बनाई। कई महत्वपूर्ण मौकों पर टीम के लिए तेजी से रन जुटाए तो टीम के लिए खतरनाक साबित होती जा रही विपक्षी बल्लेबाजों की साझेदारी को तोड़कर मैच का रुख ही बदल डाला।
इन खूबियों के अलावा जडेजा कुछ और भी हैं। वह बेहद फुर्तीले और खतरनाक क्षेत्ररक्षक भी हैं। मैदान के किसी हिस्से से, किसी भी कोण से गेंद को सीधे स्टम्प पर मारकर गिल्लियां बिखेरने में उन्हें महारत है। इसकी वजह से कई जमे जमाए बल्लेबाज रनआउट हो चुके हैं। नजदीकी क्षेत्ररक्षण हो या फिर सीमारेखा के पास हवा में खेली गई कोई भी गेंद जडेजा के आसपास से नहीं निकल सकती। गेंदबाज आश्वस्त होते कि बल्लेबाज ने गेंद को हवा में खेला है और जडेजा इसके आसपास हैं तो विकेट मिलना तय है।
आईपीएल में 21 अप्रैल को मुंबई के खिलाफ मैच में जडेजा की इस क्षमता का सबसे निराशाजनक रूप दिखाई दिया। उनके हाथ से दो आसान से कैच छूट गए। मैदानी फील्डिंग में भी कई बार गेंद उनके हाथों से फिसली। निश्चित रूप से इस घटना ने जडेजा को खासा विचलित किया होगा। उन्होंने धौनी और अन्य सीनियर खिलाड़ियों और अधिकारियों के साथ इसपर मंथन भी किया हो सकता है। अंततः उनका फैसला सामने आ गया।
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