बर्मिंघम। भारतीय पुरुष हॉकी टीम राष्ट्रमंडल खेलों के फाइनल में जिस अंदाज में ऑस्ट्रेलिया के हाथों पराजित हुआ, वह किसी भी भारतीय खेलप्रेमी के गले उतरने वाला नहीं है। जितने गोल भारतीय टीम ने पूरे टूर्नामेंट में खाए, उतने एक मैच में खा लिए। फाइनल में गोल करना तो दूर, भारतीय खिलाड़ी इसके आसपास भी नहीं फटक सके। टीम में एक ही खिलाड़ी दिखा, जिसने अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह निभाने की कोशिश की। वह खिलाड़ी हैं गोलकीपर पी.आर. श्रीजेश, जिन्होंने ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के कई हमलों को बखूबी बचाया। श्रीजेश मानते हैं कि हमने सिल्वर मेडल नहीं जीता, बल्कि स्वर्ण पदक गंवा दिया।
भारतीय हॉकी की दीवार कहे जाने वाले श्रीजेश ने जी न्यूज से बात करते हुए कहा कि यह एक बेहतरीन अवसर था, जिसे हमने गंवा दिया। इस मैच से पहले फाइनल तक का सफर काफी अच्छा रहा। लीग मैचों में इंग्लैंड से ड्रॉ खेलने के सिवा कनाडा और घाना को हराया। सेमीफाइनल में दक्षिण अफ्रीका को परास्त किया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 0-7 का स्कोर वाकई बड़ा झटका देने वाला रहा। हालांकि यह राहत जरूर रही कि 2018 में गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों से खाली हाथ लौटने के बाद बर्मिंघम से चांदी लेकर आ रहे हैं। भारतीय टीम ने 2020 के टोक्यो ओलंपिक में भी कांस्य पदक जीता था।
श्रीजेश ने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों जैसी प्रतिस्पर्धा के फाइनल में पहुंचना काफी अच्छा रहा, लेकिन फाइनल में मिली हार लंबे अरसे तक सालती रहेगी। हमारी टीम में कई युवा खिलाड़ी हैं, जिनके लिए यह मैच एक सबक साबित होगा। अगर आपको खिताब हासिल करने के लिए ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम का सामना करना है तो मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत होना होगा। श्रीजेश ने कहा कि टीम का सबसे सीनियर सदस्य होने के नाते मैं यही कह सकता हूं कि युवा खिलाड़ियों को इस मैच से काफी कुछ सीखना चाहिए।