वाराणसी। रोजमर्रा की जरूरत, समस्या और चिंताओं के समाधान में योग काफी मददगार है। योग प्राचीन भारत के महान ऋषि मुनियों द्वारा विकसित ध्यान की एक पारम्परिक पद्धति है, जिससे मन और शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित किया जाता है।
ये बातें अरुणाचल प्रदेश के अरुणोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विश्वनाथ शर्मा ने राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा आयोजित द्वितीय साप्ताहिक योग प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि भारत में हजारों साल पहले, ऋषियों और संतों ने भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्र के नियमों की खोज की। उनकी कठिन तपस्या से योग की उत्पत्ति हुई और इसमे शरीर, सांस, एकाग्रता, विश्राम और ध्यान के मूल्यवान, व्यावहारिक निर्देश दिए गए हैं।
उन्होंने कहा कि आज योग के द्वारा असाध्य रोगों का इलाज किया जा रहा है। योग” संस्कृत शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ होता है “शामिल होना, एकजुट होना”। योग से शरीर, मन, चेतना और आत्मा को एकजुट करके संतुलन में लाया जा सकता है।
मुख्य अतिथि भारत सरकार युवा कार्यक्रम खेल मंत्रालय के राष्ट्रीय सेवा योजना के क्षेत्रीय निदेशक डॉ अशोक श्रोति और राष्ट्रीय सेवा योजना के डॉ अंशुमाली शर्मा ने भी प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित किया।
मुख्य प्रशिक्षक योगाचार्य अमित आर्य ने कहा कि योग को शारीर की पूरी तरह से रोग मुक्त करने के लिए जाना जाता है। प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण छोटा हिस्सा है। पतंजलि ने अपने योग सूत्र मे वर्णन किया है कि यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान और समाधि , योग के आठ अंग हैं। उनमें से तीसरा और चौथा भाग, प्राणायाम और आसन को बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
अतिथियों का स्वागत कार्यक्रम अधिकारी डॉ. लाल जी पाल ने और धन्यवाद ज्ञापन सुश्री प्रतिमा यादव ने किया। कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम समन्वयक डॉ. बाला लखेंद्र ने किया।
इस अवसर पर योग जागरूकता पर आधारित प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें सुश्री शालिनी दुबे, राखी चौहान को प्रथम, सुश्री प्रतिमा यादव और प्रिया मिश्रा को द्वितीय तथा सुश्री साइमा खातून, सुरभि सुमन और प्रतिभा सिंह को तृतीय स्थान से पुरस्कृत किया गया।