वाराणसी। दृष्टिबाधित व्यक्ति लिखने, पढ़ने और कम्प्यूटर के इस्तेमाल के लिए ब्रेल का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, ब्रेल की मदद से कम्प्यूटर चलाने की अपनी चुनौतियां हैं। लेकिन, अगर ऐसा संभव हो जाए कि बिना ब्रेल के ही दृष्टिबाधित व्यक्ति कंप्यूटर पर काम कर सकें, तो इससे चीज़ें और आसान हो जाएंगी।
बीएचयू, आईआईटी-बीएचयू तथा सीडब्ल्यूआर विश्वविद्यालय (अमेरिका) के शोधकर्ताओं की टीम के इस संबंध में एक महत्वपूर्ण अध्ययन में उत्साहजनक नतीजे निकल कर आए हैं। ये अपनी तरह का ऐसा पहला प्रयोगात्मक कार्य था, जिसमें दृष्टिबाधित लोगों द्वारा हाव-भाव आधारित मानव-कम्प्यूटर संवाद की तकनीक डैक्टाइलोलॉजी की मदद से कम्प्यूटर के प्रयोग पर अध्ययन किया गया।
बीएचयू की ओर से मनोविज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ. तुषार सिंह तथा शोध छात्रा ऐश्वर्य जायसवाल इस शोध टीम में शामिल थीं। अध्ययन से यह सामने आया कि डैक्टाइलोलॉजी, कम्प्यूटर इस्तेमाल करने में दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए एक संभावित उपयोगी तरीका हो सकती है। प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग जर्नल आईईईई ट्रांसएक्शन्स ऑन ह्यूमन-मशीन सिस्टम्स में प्रकाशित इस शोध ने दृष्टिहीन उपयोगकर्ताओं के लिए स्थापित कंप्यूटर इनपुट तकनीक ब्रेल पर हाव-भाव -आधारित तकनीक के सापेक्ष महत्व का मूल्यांकन किया और पाया कि ब्रेल की तुलना में हाव-भाव-आधारित तकनीक दृष्टिहीन-दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए एक बेहतर और ज्यादा महत्वपूर्ण कंप्यूटर इनपुट तकनीक है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह नई खोज दृष्टिहीन व दृष्टिबाधित लोगों को कंप्यूटर या कम्प्यूटरीकृत प्रणालियों के संचालन एवं विशेषज्ञता में सुधार करने में मदद करेगी, तथा उन्हें वर्तमान डिजिटल युग का हिस्सा बनने में सक्षम बनाएगी।
इस अध्ययन में अंतर्गत शोधकर्ताओं ने दृष्टिहीन-दृष्टिबाधित प्रतिभागियों को कंप्यूटर को इनपुट देने हेतु डैक्टाइलोलॉजी पोज़िंग और ब्रेल टाइपिंग तकनीकों पर 30-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम दिया। इसके बाद प्रतिभागियों के टाइपिंग प्रदर्शन पर इनपुट तकनीक (डैक्टाइलोलॉजी और ब्रेल) और कार्य के संज्ञानात्मक भार (किसी कार्य को करते समय कार्य करने वाले की कार्यशील स्मृति पर पड़ने वाला भार) के प्रभाव का आकलन किया गया। परिणाम बताते हैं कि, सभी संज्ञानात्मक भार स्थितियों में, ब्रेल की तुलना में हाव-भाव-आधारित तकनीक का उपयोग करते हुए प्रतिभागियों ने कम रिसपॉंन्स अवधि प्रदर्शित की तथा त्रुटियां भी कम देखी गईं। डॉ. तुषार सिंह ने बताया कि इन निष्कर्षों का अर्थ है कि, प्रतिभागियों ने ब्रेल की तुलना में हाव-भाव आधारित तकनीक का उपयोग करके टाइपिंग कार्य में बेहतर प्रदर्शन किया और यह उल्लेखनीय रूप से दृष्टिहीनों-दृष्टिबाधितों के लिए अधिक सुविधाजनक और महत्वपूर्ण इनपुट तकनीक साबित हुई।