वाराणसी। कबीर का जनपद बहुआयामी है। उनके जनपद में ईश्वर पूरी ताकत के साथ मौजूद है। वहां धर्म का कोई सांगठनिक रूप नहीं है।वे हर प्रकार के अन्याय का विरोध करते हैं। उनके यहां पुरोहिती व्यवस्था का तीखा विरोध मिलता है।
बीएचयू के भोजपुरी अध्ययन केंद्र में कबीर की 624वीं जयंती पर आयोजित ‘कबीर का जनपद’ विषयक गोष्ठी में मुख्य वक्ता आलोचक प्रो. कमलेश वर्मा ने यह बात कही। अध्यक्षता करते हुए भोजपुरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि कबीर शिष्टपद की जगह जनपद के कवि हैं। संस्कृत भाषा के समानांतर उन्होंने लोक भाषा के रूप में भोजपुरी भाषा का अपनी कविता में प्रयोग किया। अपनी आलोचकीय प्रतिभा के बल पर वे वास्तविक जनपद की जगह संभव जनपद के कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं और ‘अमरपुर’की पहचान करते हैं।
डॉ. प्रभात कुमार मिश्र ने कहा कि कबीर का जनपद समृद्ध जनपद है, जिसकी उपस्थिति रविदास, मीरा व तुलसी से होते आज तक मौजूद है। कबीर का साहित्य कई तरह की जड़ताओं से मुक्त करता है।
डॉ विंध्याचल यादव ने कहा कि कबीर के जनपद में वर्ण व्यवस्था की निचली सतह पर उपस्थित लोग आते हैं। वे उपेक्षितों के अपेक्षित कवि हैं। वे इतने क्रांतिकारी हैं कि कोई भी उन्हें इस्तेमाल नहीं कर सकता है। उनके जनपद में किसी भी बिचौलिए के लिए कोई जगह नहीं है। डॉ. सत्यप्रकाश सिंह ने कहा कि कबीर उपेक्षित वर्ग की आवाज हैं।
कार्यक्रम का संचालन शोध छात्र मनकामना शुक्ल पथिक ने किया। स्वागत उदय पाल ने और धन्यवाद ज्ञापन आर्यपुत्र दीपक ने किया। कार्यक्रम में शोध छात्र अमर कृष्ण दीक्षित ने कबीर के पद ‘हिरना समझ बूझ बन चरना’ की सांगीतिक प्रस्तुति दी जिंसमें शोध छात्र सुधीर कुमार ने बांसुरी पर साथ दिया।