वाराणसी। आने वाला समय संस्कृत व संस्कृति का होगा, सम्पूर्ण राष्ट्रीय शिक्षनिति संस्कृत के आधार पर ही विकसित की गयी है| सम्पूर्ण विश्व संस्कृत में छिपे भारतीय ज्ञान-विज्ञान के तत्वों को जानने, समझने व अनुसंधान के लिये अग्रसर हो रहा है| विश्व इन्हें जानने के लिए काफी उत्सुक है।
ये बातें बीएचयू के रुइया छात्रावास (संस्कृत ब्लॉक) के शताब्दी वर्ष समारोह के उद्घाटन अवसर पर सोमवार को उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहीं। समारोह के सारस्वत अतिथि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने कहा कि छात्रों को अध्यापन के साथ-साथ छात्रावासीय कार्यो व गतिविधियों में सक्रिय सहभागिता भी व्यक्तित्व का विकास करती है| छात्रावास में सिर्फ़ रहना ही नहीं होता, अपितु अलग-अलग स्थानों व प्रदेशों से आये अपरिचित छात्रों के साथ प्रेम-मित्रता करना, सुख-दु:ख में एक दुसरे की मदद करना, नेतृत्व क्षमता व विभिन्न गतिविधियों के मध्यम से उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास होता है| विशिष्ट अतिथि भारतीय थल सेना के धर्म शिक्षक डॉ. दिग्विजय पाठक ने कहा कि सेना में लक्ष्य और अनुशासन दो प्रमुख तत्व होते हैं। निश्चित समय में लक्ष्य को सफलता पूर्वक साधना बड़ी कला होती है। प्रत्येक छात्र को अपने जीवन में अनुशासन धारण करना चाहिए।
अध्यक्षता करते हुये कुलगुरु प्रो. विजय कुमार शुक्ल ने कहा कि महामना की बगिया के पूर्व छात्रों की विशाल परम्परा है, जो अपने विभिन्न प्रकार के योगदानों द्वारा विश्वविद्यालय को गौरवान्वित कर रहे है| पूर्व छात्र डॉ. मुनीश कुमार मिश्र ने मेस समस्या , सडक व ग्राउन्ड की समस्या, कमरों की समस्या, भारत रत्न अभियान आदि के बारे में बताया| द्वितीय सत्र में छात्रावास के पूर्व व वर्तमान कर्मचारियों तथा प्रशासनिक संरक्षकों का सम्मान किया गया|
स्वागत व विषय प्रवर्तन संरक्षक प्रो. सरोज कुमार पाढी ने किया, धन्यवाद ज्ञापन छात्र सलाहकार प्रो. शंकर कुमार मिश्र ने किया था कार्यक्रम का संयोजन व संचालन प्रशासनिक संरक्षक प्रो. शत्रुघ्न त्रिपाठी ने किया|