वाराणसी। अभीष्ट-वस्तु की प्राप्ति तथा अनिष्ट के परित्याग के लिये अलौकिक उपाय जो ग्रन्थ बताता है, वह ‘वेद’ है। स्वर्ग ब्रह्म, धर्म आदि का ज्ञान केवल वेद से ही हो सकता है। अतः अलौकिक विषयों के ज्ञान में ‘वेद’ प्रमाण है।
यह बात बीएचयू के वैदिक विज्ञान केंद्र के समन्वयक प्रो. उपेंद्र कुमार त्रिपाठी ने कर्नाटक के चितम्बलपुरा स्थित श्री सत्य साई यूनिवर्सिटी फॉर ह्यूमन एक्सिलेंस में आयोजित दो दिवसीय वैश्विक सम्मेलन के समापन समारोह में गुरुवार को ‘‘शिक्षा का वैदिक स्वरूप’’ पर चर्चा करते हुए कही। उन्होंने वेद शब्द के पर्याय एवं व्युत्पत्ति, वेद की अपौरुषोयता, अष्टादश विद्या परिचय, भारतीय दर्शन, वेद पाठ एवं संरक्षण आदि विषयों पर विस्तृत चर्चा करते हुए आधुनिक काल में शनैः शनैः विलुप्त हो रहे वैदिक शिक्षा पद्धति एवं गुरुकुल शिक्षा पद्धति को बढ़ावा देने की जरूरत बताई।
इस सत्र में अमेरिका की लेखिका एवं भाष्यकार सहाना सिंह ने ‘‘गुरुकुल: शिक्षा एवं ज्ञान का प्रमुख स्थल’’ विषय पर कहा कि गुरुकुल शिक्षा विधि में नैतिक तथा चारित्रिक गुणों के संवर्धन के प्रति सदैव सचेष्ट रहती थी। अतः विद्यार्थियों को चयनित करते समय किसी अन्य प्रकार के भेद-भाव के स्थान पर उनकी पात्रता का विशेष ध्यान रखा जाता था।
वाराणसी के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केद्र के निदेशक प्रो. विजय शंकर शुक्ल ने ‘‘वैदिक काल में शिक्षा: चारों आश्रमों का आधार’’ विषय पर कहा कि हिंदू धर्म में आश्रम व्यवस्था प्राचीन और मध्यकालीन युग के भारतीय ग्रंथों में चार उम्र के आधार पर विभाजित की गयी है। चार आश्रम ब्रह्मचर्य (छात्र), गृहस्थ (गृहस्थ), वानप्रस्थ (वनवासी) और संन्यास (त्याग) हैं। हिंदू धर्म में आश्रम प्रणाली धर्म अवधारणा का एक पहलू है। यह भारतीय दर्शन में नैतिक सिद्धांतों का एक हिस्सा भी है, जहाँ इसे मानव जीवन के चार उचित लक्ष्यों (पुरुषार्थ), पूर्णता, खुशी और आध्यात्मिक मुक्ति से जोड़ा जाता है।
चतुर्थ सत्र के वक्ता बीएचयू के वेद विभाग के प्रो. हृदयरंजन शर्मा ने ‘‘वेदों की उच्चतम शिक्षा एवं वास्तविक क्षमता का ज्ञान’’ विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि वेद विश्व में लिखित साहित्य का सबसे प्राचीनतम प्रामाणिक एवं वैज्ञानिक अभिलेख सिद्ध हुआ है। परब्रह्म के रूप में जाने जाने वाले सर्वोच्च के वास्तविक अस्तित्व के समान शाश्वत है और यह ज्ञान एक शिक्षक और सिखाई गई परंपरा में अच्छी तरह से संरक्षित है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के प्रो. राकेश उपाध्याय, नितिन श्रीधर, चीफ क्यूरेटर, अद्वैत एकेडेमी (भारत), सद्गुरु मधुसून साई ने भी विचार रखे। कार्यक्रम का आयोजन वैदिक विज्ञान केन्द्र, श्री सत्य साई यूनिवर्सिटी फॉर ह्यूमन एक्सिलेंस, एवं महर्षि यूरोपियन रिसर्च यूनिवर्सिटी, सीलिसबर्ग, स्विटजरलैंड ने संयुक्त रूप से किया।