वाराणसी। बीएचयू के विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी ने कहा कि बीएचयू में कई विद्यार्थी ग्रामीण परिवेश से आते हैं। इनमें से कई विद्यार्थी विज्ञान संस्थान में भी पढ़ते हैं। अक्सर देखा जाता है कि उन्हें अंग्रेजी में पाठ समझने में दिक्कत होती है। मेरा आग्रह है कि शिक्षक उन्हें सरल हिन्दी भाषा में विज्ञान समझाएं।
आजादी का अमृत महोत्सव और हिन्दी दिवस के मौके पर बुधवार को रसायन विज्ञान विभाग के प्रो. एएस जोशी सभागार में आयोजित कार्यक्रम में प्रो. त्रिपाठी ने यह बात कही। कार्यक्रम का आयोजन हिन्दी प्रकाशन समिति की ओर से किया गया था। डॉ. दया शंकर त्रिपाठी ने समिति की उपलब्धियों और गतिविधियों पर प्रकाश डाला और हिन्दी में विज्ञान की पुस्तकों के लेखन की आवश्यकता बताई।
मुख्य वक्ता लखनऊ स्थित केंद्रीय औषधि संस्थान की पूर्व निदेशक डॉ. मधु दीक्षित ने चिकित्सा जगत में हिन्दी के महत्व तथा प्रतिरोधक तंत्र में न्यूट्रोफिल के योगदान पर प्रकाश डाला और बताया कि हमारे ये न्यूट्रोफिल हमारे प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रथम योद्धा हैं। ये हमारे रक्त में सबसे अधिक मात्रा में मौजूद रहते हैं जबकि इनका जीवन काल आठ से दस घंटे के लगभग का होता है। उन्होंने बताया कि जब हमारे शरीर में उचित मात्रा में इसका निर्माण नहीं हो पाता, तब हमारे शरीर में संक्रमण हो जाता है। विशिष्टाचार्य और कृषि वैज्ञानिक आचार्य जय प्रकाश लाल ने कृषि में हिन्दी के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि हम किसानों से मातृभाषा में वार्तालाप करते हैं, जिसका खेती में लाभ मिलता है। यदि हम अन्य भाषा में बात करते तो इतना लाभ नहीं मिल पाता।
आचार्य रुद्र प्रकाश मलिक ने कहा कि अपनी जड़ों को ना भूलें और अधिक से अधिक वैज्ञानिक पठन-पाठन में हिन्दी भाषा का प्रयोग करें ताकि ग्रामीण अंचल के छात्र सरलता से वैज्ञानिक विषय वस्तु को समझ सकें। आचार्य रुद्र प्रकाश मलिक ने उदाहरण देकर यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय ज्ञान, विज्ञान व गणित की क्षति इसलिए हुई क्योंकि हम अपनी मूल भाषा संस्कृत को भूल चुके हैं। उन्होंने बताया कि अपनी विदेश यात्रा के दौरान जब हम अंग्रेजी का उपयोग करते हैं तो वे विदेशी पूछते हैं कि क्या आपकी कोई अपनी मातृभाषा नहीं है? यह कितनी शर्मनाक बात है।
मुख्य अतिथि आचार्य विजय कुमार शुक्ल, संकाय प्रमुख, आचार्या मधुलिका अग्रवाल, निदेशक आचार्य अनिल कुमार त्रिपाठी, आचार्य एसबी अग्रवाल, विशिष्ट अतिथिजन, आचार्य जय प्रकाश लाल व आचार्य रुद्र प्रकाश मलिक ने डॉ. दया शंकर त्रिपाठी की लिखित पुस्तक “रक्तचाप : लक्षण, कारण एवं निवारण” का लोकार्पण किया। संकाय प्रमुख, आचार्या मधुलिका अग्रवाल ने कहा कि विदेशों में निवास करने वाले भारतीयों का कर्तव्य है कि वे वहां के भारतीयों को हिन्दी भाषा का ज्ञान कराएं। अतिथि आचार्य विजय कुमार शुक्ल ने हिन्दी भाषा की गरिमा व नयी शिक्षा नीति में हिन्दी व क्षेत्रीय भाषाओं के महत्व पर चर्चा की और कहा कि जिस देश ने अपनी मातृभाषा को छोड़ा वह पिछड़ गया। उदाहरण के तौर पर बतलाया कि चीन, जापान, फ्रांस, रूस आदि देश अपनी मातृभाषा में अध्यापन और अनुसंधान कार्य करते हैं, जिससे उनके देश के वैज्ञानिक लाभान्वित होते हैं।
संगोष्ठी की शुरुआत विज्ञान संकाय प्रमुख, आचार्या मधुलिका अग्रवाल एवं हिन्दी प्रकाशन समिति समन्वयक आचार्य जगत कुमार राय ने मालवीय जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण से किया। मुख्य अतिथि और वक्ताओं, सहभागियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आचार्य जगत कुमार राय, समन्वयक, हिन्दी प्रकाशन समिति ने उदाहरण के साथ बताया कि विदेशी लोग भी मातृभाषा के प्रबल समर्थक होते हैं।