वाराणसी। बीएचयू के भारत अध्ययन केंद्र व अयोध्या शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान से मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र के महामना सभागार में द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘आख्यान’ का आयोजन हुआ। मुख्य अतिथि श्रीवत्स गोस्वामी, पद्मश्री शेखर सेन, प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी, संगोष्ठी संयोजिका प्रो. मालिनी अवस्थी और केंद्र समन्वयक प्रो. सदाशिव द्विवेदी मंत्रोचार के साथ दीप प्रजवल्लन व मालवीय जी की प्रतिमा पर पुष्पार्पण कर के शुभारंभ किया।
भारत की आधारशिला कथा परंपरा विषयक प्रथम सत्र में स्वागत केंद्र समन्वयक प्रो. सदाशिव कु द्विवेदी ने किया। इस कड़ी में संगोष्ठी संयोजिका मालिनी अवस्थी ने ब्रज व मथुरा से कथा परंपरा को जोड़ते हुए इसकी महिमा का बखान किया। मुख्य उद्बोधक प्रो. कमलेश दत्त त्रिपाठी ने गतिशीलता व स्थिरता को आख्यान से जोड़ते हुए कहा कि आख्यान संस्कृति का आधार है। संस्कृति का निकटतम शब्द धर्म है। धर्म का अनुवाद मजहब कतई नही है। रामायण, महाभारत पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि कथा परंपरा में जो पराश्रयता है, भावानुकीर्तन है, एकरसता है वही कथा परंपरा है। साथ ही चेतावनी दी कि भारतीय ज्ञान का उपयोग पश्चिमी ज्ञान परंपरा में समायोजन हानिकारक है।
मुख्य अतिथि आध्यात्मिक चिंतक श्रीवत्स गोस्वामी ने कथा परंपरा को भारत की आधारशिला बताया। उन्होंने वर्णमाला के क वर्ण को केंद्र में रखकर संस्कृति व कथा वाचन के महत्व बताते हुए कहा कि यह यात्रा मानक संस्कृति की विकास यात्रा है, जो क वर्ण से प्रारंभ होती है। इसपर बल देते हुए उन्होंने कहा कि इस असत रूपी शिला को हटाकर सतरूपी शिला का अनुभव करना चाहिए। शिव, राम, कृष्ण व मनपसन्द शक्ति का रूप हमारी चार आधारशिलाएं हैं, जिनपर भारत भवन की आधारशिला टिकी हुई है, जो भारतीय संस्कृति को रूप और स्वरूप प्रदान करते हैं। भक्ति, ज्ञान और कर्म के बिना भारत भवन कि आधारशिला नहीं रखी जा सकती।
इसके पश्चात संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली के पूर्वाध्यक्ष व प्रसिद्ध नाट्यकर्मी पद्मश्री शेखर सेन ने कला और संस्कृति के जुड़ाव पर बल दिया। नाट्य परंपरा को कथा परंपरा से जोड़ते हुए उन्होंने रामायण के किस्से का मंचन किया। उन्होंने कहा कि बिना आख्यान के नाट्य की प्रस्तुति सम्भव नहीं। कथाकार को केंद्र में रखकर उन्होंने कहा कि की संस्कृति को पुष्पित-पल्लवित कर उसे संजोकर रखना चाहिए साथ ही कबीर व सूरदास पर आधारित अपने नाटक के कुछ भागों को कथा परंपरा से जोड़कर अपनी बात रखी। विद्वानों के उद्बोधन के पश्चात अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किया। इसी के साथ प्रथम सत्र की समाप्ति हुई। धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव अमित कुमार पांडेय ने किया।