वाराणसी। जानेमाने भारतविद और बीएल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी के निदेशक प्रो. गया चरण त्रिपाठी ने कहा कि भारतीयों की सबसे बड़ी विशेषता अध्यात्म है।
भारत रत्न महामना पं. मदन मोहन मालवीय के जयंती समारोह कार्यक्रम के तहत शनिवार को मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र में ‘भारतीय ज्ञान की वैश्विक व्याप्ति’ एवं ‘भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिकता की चुनौतियां’ विषयक व्याख्यान में उन्होंने भारतीय धर्म में अहिंसा के महत्त्व को बताते हुए कहा कि कलिंग विजय के बाद सम्राट अशोक को भी लगा कि इतने लोगों की जान जाने के बाद हमें क्या मिला? धर्म की विजय ही वास्तविक विजय है। अन्य सभी चीजें अस्थाई हैं। जो हृदय को जीत लेता है, वही वास्तविक विजय है। सत्य एवं अहिंसा के साथ प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सुखी रह सके उसे धर्म की संज्ञा दी गयी है।
प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि धर्म में नैतिक मूल्यों, अहिंसा, करुणा, मैत्री का प्रसार करना भारतीयों की विशेषता रही है। इसीलिए अशोक ने कलिंग विजय के बाद पश्चाताप किया। उन्होंने ऋग्वेद का सन्दर्भ देते हुए कहा कि उसमें कहा गया है कि अकेले भोजन अर्थात उपभोग मत करो। जो अकेले उपभोग करता है, वह पाप ही खा रहा होता है। इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति को एक दूसरे का सहायक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में अंकों का अविष्कार हुआ। ब्रह्म के स्वरूप को जो समझता है, वही शून्य की कल्पना कर सकता है। अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने शिष्यों को विभिन्न देशों में भेजा।
प्रो. त्रिपाठी के मुताबिक ईसाई धर्म बौद्ध धर्म की एक शाखा है। इसके लिए उन्होंने ईसाई एवं बौद्ध धर्म के बीच नौ (9) साम्यों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि बौद्धों की तरह इसाई पादरियों के लिए कठोर ब्रह्मचर्य पालन करना अनिवार्य था, जबकि यहूदियों में यह परंपरा नहीं थी। शाकाहारी भोजन अनिवार्य था, जबकि वहां की जलवायु के अनुकूल नहीं था। इसका मुख्य कारण यह था कि ईसा मसीह 27 से 30 वर्ष की उम्र के बीच अलेक्जेंड्रिया में बौद्ध भिक्षुओं के संसर्ग में रहे।
अध्यक्षता कर रहे संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि हमारी ज्ञान परम्परा धर्म से नियंत्रित है। अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित करना हमारी ज्ञान की विशेषता रही है। स्वागत वक्तव्य देते हुए मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र के समन्वयक प्रो. संजय कुमार के कहा कि प्रो. गया चरण त्रिपाठी दुनिया के सबसे बड़े इंडोलॉजिस्ट हैं। वह भारतीय एवं पश्चिमी ज्ञान के बीच सेतु का काम करते रहे हैं। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. राजकुमार तथा कार्यक्रम संचालन डॉ. सिद्धिदात्री भारद्वाज ने किया। इस मौके पर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ला, डॉ. विजय शंकर शुक्ला, डॉ. अभिजीत दीक्षित, डॉ.शंकर मिश्र, प्रो. उपेन्द्र त्रिपाठी, डॉ. उषा त्रिपाठी, डॉ. ध्रुव कुमार सिंह, डॉ. राजीव वर्मा आदि उपस्थित थे।