वाराणसी। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने पहली बार ऐसे वैश्विक मृदा हॉटस्पॉट की पहचान की है, जिनमें मृदा पारिस्थितिक गुणों (अथवा गुणवत्ता – soil ecological values) के संरक्षण की अत्यंत आवश्यकता है। बीएचयू के पर्यावरण तथा संपोष्य विकास संस्थान स्थित प्लांट-माइक्रोब इंटरेक्शन लेबोरेटरी में कार्यरत डॉ. जय प्रकाश वर्मा तथा उनके शोध छात्र अर्पण मुखर्जी, वैज्ञानिकों के इस अंतरराष्ट्रीय समूह का हिस्सा हैं। इस अध्ययन में मृदा पारिस्थितिक गुणों के संरक्षण के लिए हॉटस्पॉट को मान्यता दी गई है और इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि मृदा प्रकृति संरक्षण योजना को सर्वोच्च महत्व दिया जाना चाहिए, ताकि तेजी से बदलती वैश्विक जलवायु में मृदा पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं और इसकी उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सके। यह अध्ययन प्रतिष्ठित वैश्विक विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने मिट्टी के पारिस्थितिक गुणों के संरक्षण के लिए वैश्विक हॉटस्पॉट का आंकलन किया और मिट्टी की जैव विविधता (स्थानीय प्रजातियों की समृद्धि और विशिष्टता) और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (जैसे जल विनियमन या कार्बन भंडारण) के विभिन्न आयामों को मापा। इस अध्ययन में सभी महाद्वीपों से 23 देशों से लिए गए मिट्टी के 615 नमूनों के भीतर जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के संकेतकों के 10,000 से अधिक अवलोकनों का सर्वेक्षण किया गया। इनमें स्थानीय प्रजातियों की समृद्धि, जैव विविधता विशिष्टता और पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं जैसे जल विनियमन और कार्बन भंडारण के मिट्टी के तीन पारिस्थितिक कारकों का आकलन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि ये आयाम दुनिया के विपरीत क्षेत्रों में चरम पर हैं। उदाहरण के लिए, समशीतोष्ण पारिस्थितिक तंत्र ने उच्च स्थानीय मृदा जैव विविधता (प्रजातियों की समृद्धि) को दिखाया, जबकि ठंडे पारिस्थितिक तंत्रों की पहचान मृदा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के हॉटस्पॉट के रूप में की गई। इसके अलावा, परिणाम बताते हैं कि उष्णकटिबंधीय और शुष्क पारिस्थितिक तंत्र मिट्टी के जीवों के सबसे अनूठे समुदायों को धारण करते हैं। प्रकृति संरक्षण प्रबंधन और नीतिगत निर्णयों में अक्सर मृदा पारिस्थितिक मूल्यों की अनदेखी की जाती है, नया अध्ययन ऐसे स्थानों को चिन्हित करता है जहां उन्हें बचाने के प्रयासों की सबसे ज्यादा जरूरत है।
डॉ. जय प्रकाश वर्मा ने कहा कि मानव और सभी जीवित चीजों के लिए सभी पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं प्रदान करने के लिए मिट्टी सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। मृदा अपने आप में एक संसार को समेटे हुए है, जिसमें अरबों केंचुए, नेमाटोड, कीड़े, कवक, बैक्टीरिया आदि वास करते हैं। फिर भी, हम इन जीवों या पारिस्थितिक तंत्र पर उनके गहन प्रभावों के बारे में शायद ही जानते हों। मिट्टी के बिना, भूमि पर बहुत कम जीवन होता और निश्चित रूप से कोई मनुष्य नहीं होता। उन्होंने कहा कि जो भी भोजन ग्रहण करते हैं उसका अधिकांश भाग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मिट्टी की उर्वरता पर निर्भर करता है। हालांकि, मिट्टी जलवायु और भूमि-उपयोग परिवर्तन के प्रति भी संवेदनशील है। मृदा पारिस्थितिक मूल्यों को बेहतर ढंग से संरक्षित करने के लिए, हमें यह जानना चाहिए कि उनके संरक्षण की सबसे अधिक आवश्यकता कहां है। मिट्टी के ऊपर रहने वाले पौधों और जानवरों के लिए दशकों पहले जैव विविधता के हॉटस्पॉट की पहचान की गई थी। हालांकि, मिट्टी के पारिस्थितिक मूल्यों के लिए अब तक ऐसा कोई मूल्यांकन नहीं किया गया था।
अध्ययन यह इंगित करता है कि मिट्टी की जैव विविधता और मिट्टी की पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की अक्सर नीतिगत निर्णय लेने और प्रकृति संरक्षण योजना में अनदेखी की जाती है। साथ ही वर्तमान संरक्षण नीतियां केवल ज़मीन के ऊपर पौधों और जानवरों पर केंद्रित होती हैं। जबकि जमीन के नीचे की मिट्टी की जैव विविधता भी मृदा संरक्षण और उसकी उत्पादकता और स्थिरता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
यह अध्ययन जलवायु विनियमन और जैव विविधता के नुकसान के लिए संरक्षण जैसे पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के संरक्षण के लिए मृदा जैव विविधता संरक्षण पर तत्काल कार्रवाई के लिए अनुसंधान, वैज्ञानिक और नीति निर्माताओं के लिए वैज्ञानिक सहायता प्रदान करता है। अनुसंधान एक नीति-ढांचे के कार्यान्वयन की सिफारिश करता है जिसमें स्पष्ट रूप से मिट्टी की जैव विविधता का संरक्षण शामिल है, जो पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, कृषि उत्पादकता और खराब पर्यावरण को बहाल करने पर वैश्विक परिवर्तनों के प्रभाव को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है।
इस शोध को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) तथा इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस योजना, काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा वित्त पोषित किया गया था।