वाराणसी। शोध कार्य पारदर्शी होना चाहिए, ताकि इसका सीधा लाभ जनता को मिल सके। इन दिनों कंपनियों की मिली भगत से आयुर्वेद की दवाएं बन रही हैं, जिससे समाज को इनका वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा है।
बीएचयू के आयुर्वेद संकाय और कानपुर के इंस्टीट्यूट ऑफ अप्लाइड स्टैटिस्टिक्स की ओर से आयोजित रिसर्च मेथडोलॉजी एवं जैव सांख्यिकी कार्यशाला के अंतिम दिन शनिवार को गोरखपुर आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एके सिंह ने यह बात कही। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के भूतपूर्व डिप्टी डायरेक्टर जनरल, डॉ. पदम सिंह ने बताया कि यह कार्यक्रम आयुर्वेद संकाय के विकास के लिए भविष्य में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।
प्रो. जीएस तोमर ने बताया कि आयुष विश्विवद्यालय की स्थापना उत्तर प्रदेश में की गई और इसकी बायोस्टैटिक्स को जोड़कर शोधपरक कार्य किये जाएंगे। संकाय प्रमुख, आयुर्वेद संकाय, प्रो. केएन. द्विवेदी ने बताया कि आयुर्वेद के शोध छात्रों को रिसर्च मेथडोलाजी एवं बायोस्टैटिक्स का समुचित ज्ञान होने पर शोध की गुणवत्ता बढ़ेगी। इन्हें इंडेक्स जर्नल्स में प्रकाशित करने की भी सुविधा रहेगी। उन्होंने कहा कि मौसम के हिसाब से औषधियों का चयन करना चाहिये अन्यथा गरमी में गरम औषधि देने से फायदे के स्थान पर नुकसान होने लगेगा।
इस अवसर पर डॉ. पद्म सिंह, डॉ. आरएन मिश्र, डॉ. आलसाद, प्रो. जीएस तोमर, डॉ. आरती लाल चन्दानी को लाइफ टाइम अचीवमेन्ट अवार्ड दिया गया। डॉ. ममता द्विवेदी, डॉ. अवनीष पाण्डेय को मानवता अवार्ड दिया गया। प्रो. पंकज मिश्रा को सर्विस एक्सेलेंस अवार्ड दिया गया। कार्यक्रम के समन्वयक, प्रो. केएन मूर्ति ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन डॉ. अवनीष पाण्डेय एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मंगला गौरी ने किया।