वाराणसी। सूचनाक्रांति के दौर में संवेदनशून्यता ने जनसंपर्क को प्रभावहीनता की ओर पहुंचा दिया है। यह बात पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाराणसी चैप्टर) की ओर से “बढ़ते माध्यम – घटते संपर्क” विषय पर आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं ने कही।

बीएचयू के जनसंपर्क कार्यालय के संयोजन में आयोजित गोष्ठी के मुख्य अतिथि श्री प्रमोद गिरी (अपर न्यायाधीश एवं सचिव,विधिक सेवा प्राधिकरण) ने व्यक्तिगत संपर्क को अत्यंत आवश्यक बताया। परिवार के साथ भी समय बिताना आज के समय मे बहुत ही जरूरी है।
चैप्टर अध्यक्ष अनिल जाजोदिया ने विषय प्रवर्तन किया तथा इसकी समायिकता को उचित बताया। काशी विद्यापीठ पत्रकारिता विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल उपाध्याय ने जीवन मे व्यक्तिगत सबंधों में कम से कम सोशल मीडिया के उपयोग की बात कही।
अमिताभ भट्टाचार्य (पूर्व अध्यक्ष) ने संवेदनशून्यता की स्थिति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया ने आपस के व्यवहार को मशीनी बना दिया है। बीएचयू के पत्रकारिता विभाग के डॉ. बाला लाखेन्द्र ने कहा कि जीवन मे जनसंपर्क का उपयोग हर समय होता है। चाहे माध्यम कितने भी बढ़ें व्यक्तिगत संपर्क ही पूर्णता का बोध करता है।
पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेन्द्र मेहता ने बताया कि एक सामान्य व्यक्ति औसतन दो घंटे 29 मिनट सोशल मीडिया का उपयोग करता है। इसके लाभ और हानि को जानना और तब उसका प्रयोग उचित होगा।
बीएचयू के सहायक जनसंपर्क अधिकारी चंद्रशेखर ने सोशल मीडिया के सदुपयोग के उदाहरण देते हुए इसके सदुपयोग के बारे में कहा। NTPC के जनसंपर्क अधिकारी एलएन पाण्डेय, BLW के जनसंपर्क अधिकारी राजेश कुमार, टाटा कैंसर हॉस्पिटल के अरविंद पांडेय ने भी विचार व्यक्त किये।
बीएचयू के पत्रकारिता विभाग के डॉ. अनुराग दवे ने सेमिनार के निष्कर्ष के रूप में बताया कि सोशल मीडिया और मेन लाइन मीडिया नई शब्दावलियों से सूचना तो पहुंचा रही हैं लेकिन कई बार ये संपर्क में मददगार नही होती। समाचार, सूचना और संवाद के संदर्भ में एक व्यापक प्रशिक्षण अभियान की आवश्यकता है।
प्रारंभ में बीएचयू के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. राजेश सिंह ने स्वागत करते हुए जनसंपर्क को सही संदर्भ में आत्मसात करने को आवश्यक बताया। गोष्ठी का संचालन चैप्टर के सचिव प्रदीप उपाध्याय ने किया।