वाराणसी। मुंशी प्रेमचंद अपने समय में जनता के मन को समझने वाले रचनाकार थे। वह आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि वह परिवर्तन की चेतना को जागृत करने वाले रचनाकार के रूप में अमर हैं।
मुंशी प्रेमचंद शोध एवं अध्ययन केंद्र ,लमही व बीएचयू के हिंदी विभाग की ओर से आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत ‘प्रेमचंद: समय और समाज’ विषय पर लमही स्थित केंद्र के सभागार में प्रेमचंद की 142वीं जयंती पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में ये बातें बीएचयू के कुलगुरु प्रो. वीके शुक्ल ने कहीं। उन्होने केंद्र के विकास की भी बात की जिससे देश ही नहीं वरन प्रेमचंद पर अध्ययन करने वाले विदेशी शोधार्थी भी केंद्र पर काम कर सकें। इस अवसर पर केंद्र के पुस्तकालय का उद्घाटन भी किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. रामकीर्ति शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद ऐसे ही रचनाकार हैं, जिनके लेखन में उनके पूर्व की चेतना विद्यमान है तथा साथ ही साथ उनकी रचनाएं उनके बाद के लेखकों को भी प्रेरणा देती हैं। प्रेमचंद प्रबोधन के रचनाकार हैं। प्रेमचंद को एक यथार्थवादी रचनाकार के रूप में याद करते हुए उन्होंने कहा कि प्रेमचंद में वह दृष्टि थी जो अपने समय और समाज के यथार्थ को भेदती है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद हिंदी के ऐसे लेखक हैं, जिनको हर भारतीय भाषा में पढ़ा जाता है।
विशिष्ट अतिथि बीएचयू के वित्ताधिकारी डॉ. अभय कुमार ठाकुर ने कहा कि प्रेमचंद ऐसे लेखक हैं, जो अपने समय और समाज के साथ हैं तथा उसका अतिक्रमण भी करते हैं। प्रेमचंद ने भारतीय समाज और जीवन की धुरी रहे किसान के जीवन को सबसे कुशलता से व्यक्त किया है।वे सामाजिक गतिशीलता के रचनाकार हैं क्योंकि वे एक विलक्षण किस्सागो हैं।उनके कथाओं में वे सूत्र हैं, जिनके माध्यम से हमें रोल मॉडल जैसे चरित्र मिलते हैं, जिनसे हमें अपने जीवन में संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है।
विशिष्ट वक्ता हिंदी विभाग के पूर्व आचार्य प्रो.राधेश्याम दुबे ने कहा कि प्रेमचंद ने अपने समय और समाज की नब्ज़ पकड़कर साहित्य लेखन किया है।उन पर और शोध किया जाना चाहिए। विशिष्ट वक्ता प्रो.श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि आजादी का सबसे सघन सरोकार यदि अपने समय में किसी लेखक को था तो वह लेखक प्रेमचंद थे। उपनिवेशवादी और साम्राज्यवादी शोषण के ग्रस्त और पीड़ित जनता की सम्वेदनाओं को व्यक्त करने वाले प्रेमचंद अन्यतम रचनाकार हैं। उन्होंने प्रेमचंद को सांस्कृतिक विकेंद्रीकरण के आधुनिक प्रस्तोता के रूप में याद किया।
बीएचयू के उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो. आफताब अहमद, प्रो.कृष्णमोहन ने भी विचार रखे। अतिथियों का स्वागत केंद्र के समन्वयक और बीएचयू के कला संकाय के प्रमुख और हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो.विजयबहादुर सिंह ने किया। आरंभ में प्रो.विजयबहादुर सिंह द्वारा संपादित पुस्तक’ प्रेमचंद -एक स्मरण’ तथा प्रो.विजयबहादुर सिंह और डॉ. मो. कासिम अंसारी द्वारा संयुक्त रूप से सम्पादित पुस्तक ‘सोजे वतन’ का लोकार्पण भी हुआ। संचालन डॉ प्रिया भारती ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सत्यप्रकाश सिंह ने किया।
कार्यक्रम में प्रो. लालजी, डॉ. रामसुधार सिंह, प्रो. ओएंन सिंह, प्रो. एमपी अहिरवार, डॉ.अशोक सिंह, प्रो. एके दुबे, प्रो.विद्याशंकर सिंह, प्रो. अशफाक़ अहमद, डॉ. समीर पाठक, डॉ. प्रभात कुमार मिश्र, डॉ. महेंद्र कुशवाहा, डॉ. अशोक कुमार ज्योति, डॉ. रविशंकर सोनकर, डॉ.अमरजीत राम, डॉ. विंध्याचल यादव, डॉ. विवेक सिंह, डॉ. प्रियंका सोनकर, डॉ. किंगसन पटेल, डॉ. अब्दुल कासिम, डॉ. अहसान हसन मौजूद रहे।