वाराणसी। ‘पुलिया प्रसंग’ संस्था की ओर से महान कथाकार प्रेमचंद की 142वीं जयंती की पूर्व संध्या पर शनिवार को आईआईटी, बीएचयू चौराहे पर ‘प्रेमचंद का दुःख’ विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार व भोजपुरी अध्ययन केंद्र, बीएचयू के समन्वयक प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद दुःख के अहसास के रचनाकार हैं, जो उन्हें गहरी सामाजिकता से जोड़ता है।उनका दुःख निम्नवर्गीय दुःख है, जहां वह हर शोषित व उपेक्षित से साथ खड़े होते हैं।
प्रो. शुक्ल ने आगे कहा कि उनके यहां शोषण के बहुआयामी तंत्र के ताकत का दुख है, जो प्रसरणशील है। प्रेमचंद को उन्होंने दुख के रिसाव का रचनाकार बताते हुए उनके गोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि व प्रेमाश्रम जैसे उपन्यासों का गहरा मूल्यांकन किया। इस अवसर पर प्रो. शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद के यहां मुक्ति व मृत्यु के बीच संघर्ष है, जिंसमें कई बार नायक की मृत्यु भी सामाजिक जड़ता के मुक्ति का आधार होती है। गोदान में होरी का चरित्र कुछ ऐसा ही है।
बीएचयू के भौतिक विभाग में आचार्य प्रो. देवेंद्र मिश्र ने कहा कि कि साहित्यानुरागी व्यक्ति निडर होता है, इसके ज्वलंत उदाहरण हैं प्रेमचंद। उन्होंने हर सामाजिक रूप के उपेक्षित व्यक्ति का अपना दुःख समझा और उसको व्यक्त किया।
युवा आलोचक डॉ. विंध्याचल यादव ने कहा कि प्रेमचंद का दुःख मरजाद की रक्षा न कर पाने का दुख है। उनके पात्रों की बड़ी समस्या भूख की समस्या है।उनका सारा साहित्य भूख के लहराते सागर से सना हुआ सा दिखाई पड़ता है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य निम्नवर्गीय मानव के टूटन की ज्वलंत दास्तान है।
काशी के अस्सी की प्रतिनिधि आवाज़ कवि डॉ. शैलेन्द्र सिंह ने कहा कि प्रेमचंद की प्रखर और सजग पत्रकारिता भी उनके दुःख को व्यंजित करती है। उन्होंने रेखांकित किया कि प्रेमचंद तुलसी के बाद सबसे अधिक पढ़े जाने वाले साहित्यकार हैं।
इस अवसर पर शोधार्थी उमेश गोस्वामी, अक्षत पांडेय, अमित कुमार, नीलेश देशमुख, शुभम चतुर्वेदी व एमए के छात्र निखिल द्विवेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। शोध छात्र उदय पाल ने संचालन किया तो मनकामना शुक्ल पथिक ने आभार व्यक्त किया।