वाराणसी। बेहतर और प्रभावी विनियमन के लिए गैर-शासकीय संगठनों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण और मददगार है। कई बार शासन को इनपर निर्भर होना पड़ता है।
बीएचयू के राजनीति विज्ञान विभाग की ओर से “नियामक शासन: भारतीय संदर्भ पर एक चर्चा” विषय पर गुरुवार को आयोजित वेब टॉक में यह बात हरियाणा के सिरसा स्थित चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अजमेर सिंह मलिक ने कही। उन्होंने कहा कि कि 1991 से एलपीजी सुधारों के युग में नियामक शासन ने बाजार संतुलन बनाए रखने और लोगों को गुणवत्तापूर्ण सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विशिष्ट ज्ञान, सामाजिक भेदभाव, अन्योन्याश्रयता और प्रसार की बढ़ती भूमिका नियामक शासन के महत्व पर प्रकाश डालती है।
प्रो. मलिक ने इस बात पर भी जोर दिया कि जटिल परिस्थितियों और विशेषज्ञता की मांग के कारण गैर सरकारी संगठनों और विभिन्न अन्य स्वैच्छिक समूहों के सहयोग और समर्थन की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि 1985 और 1991 के बाद के आर्थिक सुधारों ने नियामक शासन की आवश्यकता पर बल दिया। पर्यावरण, स्वास्थ्य, सुरक्षा, उपभोक्ता संरक्षण जैसे क्षेत्र शासन को विनियमित करने के महत्व और आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।
इस वेब टॉक में बीएचयू और इससे संबद्ध कॉलेजों के लोक प्रशासन और राजनीति विज्ञान के संकाय सदस्यों, शोधार्थियों और छात्रों ने भाग लिया। डॉ. प्रदीप परिदा ने एक प्रश्न-उत्तर सत्र का संचालन किया जहां छात्रों और विद्वानों द्वारा विविध प्रकार के प्रश्न पूछे गए। वेब टॉक की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो. शुभा राव ने की। प्रो. अभिनव शर्मा ने संचालन किया। डॉ. गोवंद कुमार इनाखिया ने आभार व्यक्त किया।