वाराणसी। बीएचयू के पूर्व कुलाधिपति डॉ. कर्ण सिंह ने कहा कि हमें भवानी-भारती की अभ्यर्चना करते हुए भवानी-वसुधा के सरोकारों से अपने आप को जोड़ने की जरूरत है। उन्होनें युवाओं को आह्वान किया कि वे ज्ञान-मार्ग, कर्म-मार्ग और सह-मार्ग के मणिकांचन संयोग को एकाकार करें।
बीएचयू के केएन.उडुप्पा सभागार में शुक्रवार को मालवीय शांति अनुसंधान केन्द्र, सामाजिक विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के रजत जयंती समारोह कार्यक्रमों की शुरुआत करते हुए डॉ. कर्ण सिंह ने भव भारत के नागरिकों से कहा कि हमें संवाद एवं सहयोग की संस्कृति विकसित करनी होगी। उनका कहना था कि हमारी सभ्यतागत विरासत में विश्व धर्म संवाद और सत्य के निरंतर अनुसंधान की उपनिषद की ज्ञान परंपरा को पुर्नअविष्कृत करा होगा।
डॉ. सिंह ने प्रश्नाकुलता को ज्ञान का उत्स कहा और विश्वविद्यालय के ज्ञान समाज को ज्ञान को कर्म में रूपांतरित करने की अनुशंसा की। बढ़ती वैश्विक हिंसा पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि हमें अंर्तधार्मिक संवाद एवं वैश्विक सहिष्णुता की शांतिपूर्ण संस्कृति की जरूरत है, जिसमें यूनेस्को चेयर ऑफ पीस एवं इंटरकल्चरल अंडरस्टैण्डिग एवं मालवीय शांति अनुसंधान केन्द्र जैसे विमर्श केन्द्र की अनिवार्यता होगी।
युनेस्को चेयर ऑफ पीस एवं इंटरकल्चरल अंडरस्टैण्डिग एवं मालवीय शांति अनुसंधान केन्द्र के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इस कार्यक्रम में सत्र की अध्यक्षता करते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुधीर जैन ने शिक्षा को नवाचार, नवोन्मेष, संवाद एवं सृजन से जोड़ते हुए कहा कि शिक्षा को सिर्फ पाठ्यक्रम एवं प्रारूपो से परे, बेहतर मनुष्यता की अवनरत खोज बताया।
विषय प्रवर्तन करते हुए यूनेस्को चेयर प्रोफेसर एवं मालवीय शांति अनुसंधान केन्द्र के संस्थापक एवं पूर्व समन्वयक प्रो. प्रियंकर उपाध्याय ने शांति को एक प्रगतिशील अवधारणा बताया जिसमें अनिवार्य रूप से संवाद एवं वैविद्यों के समाकलन की मूल्यचेतना विद्यमान होती है। उन्होनें शांति को अनिवार्य मूलभूत अधिकार बताया जिसे आंतरिक साधना और बाह्य मानव विकास के समन्वय से प्राप्त किया जा सकता है।
स्वागत करते हुए संकाय प्रमुख प्रो. बिंदा परांजपे ने इस अवसर को आनंद उत्सव बताया जिसमें ज्ञान, नवाचार, विमर्श एवं संवाद का केन्द्र बनाने के लिए मालवीय शांति अनुसंधान केन्द्र को शुभकामनाएं प्रेषित की। मालवीय शांति अनुसंधान केन्द्र के समन्वयक प्रो. मनोज मिश्रा ने केन्द्र के 25 वर्षों के यादगार सफर की विंहगम चर्चा की।
धन्यवाद देते हुए पुर्व संकाय प्रमुख प्रो. अंजू शरण उपाध्याय ने केन्द्र की अकादमिक यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ावों को रेखाकिंत किया एवं इसके अगले अकादमिक एवं शोध कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन केन्द्र की छात्रा मोनालिसा हजारिका ने की। कार्यक्रम मे बड़ी संख्या में वाराणसी नगर के प्रमुख विद्यालयों की छात्र-छात्राओं, अकादमिक विद्वानों, शोधछात्रों की भागीदारी रही।