वाराणसी। बीएचयू के रेक्टर प्रो. वीके शुक्ल ने कहा है कि भारतीय वांग्मय में सर्वाधिक पुराणों की रचना शिवतत्व को केंद्र में रखकर की गयी है। भारतीय वांग्मय, भारतीय आस्था, पर्व, त्योहार, उपासना पद्धति, स्थापत्य, कला, संगीत, नृत्य आदि अनेक क्षेत्रों में सर्वाधिक काम शिवतत्व पर किया गया है।
बीएचयू के भारत अध्ययन केंद्र तथा इण्डिक एकेडमी हैदराबाद की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “शिवम” के उद्घाटन कार्यक्रम में शुक्रवार को उन्होंने कहा कि स्कंद पुराण का काशी खंड शिवजी के महत्व का प्रकाशक है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारत अध्ययन केंद्र की सेंटेनरी चेयर प्रोफेसर पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि भारत की अरण्य संस्कृति के सबसे बड़े प्रतीक भगवान शिव हैं। वे अकेले ऐसे देव हैं जो सह अस्तित्व के सबसे बड़े पोषक हैं। वे गृहस्थ हैं लेकिन जोगी हैं, वे आशुतोष हैं तो प्रयलंकारी भी। शिव यह ज्ञान देते हैं कि जो भी भयकारक है उससे अभय हो। वे देवों के देव हैं, महादेव हैं, वे अनादि है और मूल भी हैं।
विशिष्ट वक्ता संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय प्रमुख प्रो. कमलेश झा ने कहा कि सम्पूर्ण वाङ्मय वेद प्रस्थान, आगम प्रस्थान तथा तर्क प्रस्थान में बंटा है। वेद प्रस्थान में छः आगमिक दर्शन आते हैं। इनमें साक्षात् शिव की ही उपासना और उनका विश्वरूप वर्णित हैं। इनकी उपासना से मानव जीवन सफल होता है। इसकी सभी विधाएँ इनमें वर्णित हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, वाराणसी के क्षेत्रीय निदेशक प्रो. विजय शंकर शुक्ल ने वेदों तथा उपनिषदों में शिवजी के स्वरूप तथा उनकी उपासना के विविध आयामों पर प्रकाश डाला।
स्वागत भारत अध्ययन केन्द्र के समन्वयक प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी ने किया। आधार वक्तव्य डॉ. टी गणेशन ने दिया। संगोष्ठी संकल्पना एवं उसके स्वरूप पर इण्डिक अकेडमी के वरिष्ठ निदेशक डॉ. नागराज पतुरी ने प्रकाश डाला तथा संचालन एवं धन्यवाद डॉ. अमित कुमार पाण्डेय ने किया।