वाराणसी। बीएचयू के आयुर्वेद संकाय प्रमुख और भारतीय आयुर्वेदीय अनुसंधान परिषद की संचालन समिति के सदस्य प्रो. केएन द्विवेदी ने आधुनिक औरआयुष चिकित्सा पद्धतियों को एक दूसरे का पूरक बनाने की जरूरत बताई है।
नौवीं विश्व आयुर्वेद कांग्रेस के सैटेलाइट सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति सन् 2017 में संशोधित की गयी थी, जिसका मुख्य उद्देश्य देश की सामान्य प्रचलित स्वास्थ्य शिक्षा एवं सेवा में आयुष पद्धतियों को सम्मिलित करने के लिए प्रोटोकॉल बना कर लागू करना था। इसका मौलिक उद्देश्य यह था कि ऐसा होने से देश में रोगियों की मृत्यु दर एवं विकृति दर में कमी आयेगी।
प्रो. द्विवेदी ने कहा कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के छात्रों के पाठ्यक्रम में आयुष पद्धति के आवश्यक ज्ञान का समावेश होना चाहिए। ऐसे ही आयुष पद्धति के पाठ्यक्रम में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के आवश्यक ज्ञान का समावेश होना चाहिए। ऐसा चीन में होता है। ऐसा करने से सभी पद्धति के चिकित्सा विज्ञान के छात्रों में एक-दूसरे के प्रति सम्मान एवं आत्मबल में वृद्धि होगी। भारत एक ऐसा देश है, जहां जनसंख्या अत्याधिक है और घनी है। जब इन सभी पद्धतियों को एकीकृत करके स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करायी जायेगी, तभी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिषन अपना लक्ष्य पूरा करने में सक्षम होगा।
सम्मेलन में राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, वाराणसी की प्राचार्य प्रो. नीलम गुप्ता ने भी सभी चिकित्सा पद्धतियों की आवश्यक नीतियों को एकीकृत करने पर बल दिया।
स्वागत एवं विश्व आयुर्वेद कांग्रेस की रूपरेखा के बारे में वैद्य प्रशांत तिवारी ने एवं वैद्य मनीषा ने प्रकाश डाला और वैद्य शक्तिभूषण ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
सभा में बीएचयू, राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, वाराणसी एवं अन्य आयुर्वेद महाविद्यालयों के शिक्षक एवं छात्र उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन वैद्य विकास चौरसिया ने किया।