वाराणसी। भगवान बुद्ध का जीवन दर्शन पूरी तरह लोक कल्याण को समर्पित रहा। उन्होंने निःस्वार्थ मैत्री भाव पर जोर दिया था। भगवान बुद्ध ने स्वयं दुख एवं कातरता का ध्यान रखा।
बुद्ध जयंती के मौके पर बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के जैन-बौद्ध दर्शन विभाग में बुधवार को आयोजित व्याख्यान में प्रो. सीताराम दुबे ने यह बात कही। “भगवान बुध्द की चार ब्रह्मविहार विषयक अवधारणा” विषय पर आयोजित व्याख्यान में प्रो. दुबे ने कहा कि अंगुलिमाल जैसे हिंसक पुरुष भी बुद्ध के मैत्री के प्रभाव से अहिंसक बन गए।
व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए प्रो. कमलेश झा ने महर्षि व्यास के योग दर्शन में वर्णित मैत्री करुणा मुदिता और उपेक्षा के उदाहरण से ब्रह्म विहार के महत्व को समझाया। विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार जैन ने जैन धर्म में प्रतिपादित सामायिक पाठ का उदाहरण देते हुये मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा पर कहा कि इनके जीवन मूल्य पर आचार किये बिना लोक मंगल संभव नहीं हो सकता। संयोजक प्रो. प्रद्युम्नशाह सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति की त्रिवेणी मे चार ब्रह्म विहार के विचारों का समानांतर महत्व है। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. आनन्द कुमार जैन ने किया। इस अवसर पर डां ज्ञान दास प्रो, रामनारायण द्विवेदी, प्रो. माधव जनार्दन रटाटे, डां श्री राम, डा. नारायण प्रसाद भट्टराय तथा विभाग के सभी शोधछात्र ज्ञान प्रकाश, आकाश कुमार, रेखा, अवधेश कुमार दुबे, राजीव कुमार नेगी, कोमल जैन, प्रेम प्रकाश आदि उपस्थित थे। प्रेम प्रकाश ने आरंभ में वैदिक मंगलाचरण की प्रस्तुति की। इस अवसर पर प्राकृत मंगलाचरण नीतू यादव एवं बौद्ध मंगलाचरण राजीव कुमार नेगी ने प्रस्तुत किया।