वाराणसी। सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि विधि में समाज को परिवर्तित करने की शक्ति होती है। इतिहास में विधि का प्रयोग लोगों का शोषण करने के लिये हुआ किन्तु आज विधि सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है।
बीएचयू के विधि संकाय के शताब्दी वर्ष समारोह के उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि बीएचयू की स्थापना महामना के समावेशी दर्शन तथा सहिष्णुता की भावना पर हुई तथा यह सभी को शिक्षा का समान अवसर प्रदान करता है। इस विश्वविद्यालय की महिलाओं की शिक्षा मे भी अग्रणी भूमिका रही है। उन्होंने बताया कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय भारत में सबसे पहले नि:शुल्क विधिक सहायता केन्द्र शुरू करने वाले छह विश्वविद्यालयों में से एक है। उन्होंने कहा कि विधि संकाय का शताब्दी वर्ष यह बताता है कि हम अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर गर्व करके नहीं बैठ सकते बल्कि हमें किस दिशा में आगे बढ़ना है यह सोचना है। उन्होंने कहा कि अधिवक्ताओं को पुरानी बाधाओं से बाहर निकलकर लोगों को न्याय दिलाना चाहिये। एक अधिवक्ता को निडर, साहसी एवं सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि
बीएचयू के विधि संकाय के शताब्दी वर्ष समारोह के उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि बीएचयू की स्थापना महामना के समावेशी दर्शन तथा सहिष्णुता की भावना पर हुई तथा यह सभी को शिक्षा का समान अवसर प्रदान करता है। इस विश्वविद्यालय की महिलाओं की शिक्षा मे भी अग्रणी भूमिका रही है। उन्होंने बताया कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय भारत में सबसे पहले नि:शुल्क विधिक सहायता केन्द्र शुरू करने वाले छह विश्वविद्यालयों में से एक है। उन्होंने कहा कि विधि संकाय का शताब्दी वर्ष यह बताता है कि हम अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर गर्व करके नहीं बैठ सकते बल्कि हमें किस दिशा में आगे बढ़ना है यह सोचना है। उन्होंने कहा कि अधिवक्ताओं को पुरानी बाधाओं से बाहर निकलकर लोगों को न्याय दिलाना चाहिये। एक अधिवक्ता को निडर, साहसी एवं सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य का कार्य केवल शक्ति प्राप्त करना नहीं है बल्कि उसे लोगों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिये। विधि का सच्चा गुण यह है कि वह सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त रहे।
विशिष्ट अतिथि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राजेश बिन्दल ने कहा कि भारत में तीन वर्षीय एलएलबी कोर्स पाठ्यक्रम विधि संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की देन है। उन्होंने कहा कि 1965 में बनारस लॉ जर्नल का प्रकाशन हुआ तथा उस समय अन्य किसी विधि संकाय में जर्नल प्रकाशित नहीं होता था। प्रत्येक विधि स्नातक छात्र को 40 घण्टे की मध्यस्थता का प्रशिक्षण मिलना चाहिये तथा 2 या 2 से अधिक विधि छात्रों के समूह द्वारा एक-एक गांव गोद लेकर उसे वादमुक्त बनाना चाहिये। एक सफल अधिवक्ता को कुंजी उसकी मेहनत है।
विशेष अतिथि प्रो. आरके मिश्र ने विधि संकाय की उपलब्धियां बताते हुए कहा कि न्यायाधीश पीएन भगवती, न्यायाधीश सिन्हा एवं जस्टिस आनन्द की समिति ने पूरे देश में एलएलबी त्रिवर्षीय पाठ्यक्रम के लिए प्रयास किया तथा जस्टिस आनंद ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को इस पाठ्यक्रम को पूरे देश में लागू करने का प्रस्ताव दिया। अध्यक्षता बीएचयू के रेक्टर प्रो. वीके शुक्ल ने की। समारोह में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता, संकाय के पुरा छात्र न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव तथा सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता बालासुब्रह्मण्यम, कर्नल इंद्रसेन भी थे।
विधि संकाय के भूतपूर्व संकाय प्रमुख एवं राष्ट्रीय न्यायिक शैक्षणिक संस्थान भोपाल के पूर्व उपनिदेशक प्रो. डीपी वर्मा, भूतपूर्व संकाय प्रमुख, प्रोफेसर बीएन पाण्डेय एवं पूर्व शिक्षिका आशा त्रिवेदी को सम्मानित किया गया। संकाय प्रमुख प्रो. अली मेहंदी ने अतिथियों का स्वागत किया। प्रो. अखिलेंद्र कुमार पांडेय ने आभार जताया। संचालन डॉ. डॉली सिंह ने किया।