वाराणसी। पंजाब के अजनाला कस्बे के एक कुएं से 2014 में कई मानव कंकाल मिले थे। इनको लेकर इतिहासकारों के बीच काफी मतभेद थे। फिलहाल ये मतभेद खत्म हो गए हैं। बीएचयू समेत अन्य विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों ने डीएनए टेस्ट करने के बाद बताया है कि ये कंकाल गंगा घाटी क्षेत्र के रहने वाले लोगों के हैं। यह शोध गुरुवार को प्रतिष्ठित पत्रिका फ्रंटियर्स इन जेनेटिक्स में प्रकाशित किया गया है।
कंकाल मिलने के बाद कई इतिहासकारों का मत था कि ये उन लोगों के हो सकते हैं, जो भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय हुए दंगों में मारे गए थे। हालांकि कुछ का मानना था कि ये कंकाल उन शहीदों के हो सकते हैं, जिन्हें 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों ने मार दिया था। कई तरह की भ्रांतियों पर अब भी चर्चा चल रही है।
इन कंकालों के बारे में सही जानकारी के लिए पंजाब विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजिस्ट डॉ. जेएस सेहरावत ने सीसीएमबी हैदराबाद, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट लखनऊ और बीएचयू के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर डीएनए और आइसोटोप अध्ययन किया। वैज्ञानिकों की दो अलग अलग टीमों ने अध्ययन के बाद निष्कर्ष निकाला कि ये कंकाल गंगा घाटी के किनारे रहने वालों के हैं।
इस शोध में कंकालों के 50 सैंपल का डीएनए और 85 सैंपल का आइसोटोप अध्ययन किया गया। विशेषज्ञों के मुताबिक डीएनए अध्ययन लोगों के आनुवांशिक संबंधों के बारे में जानकारी देता है, जबकि आइसोटोप से भोजन सम्बन्धी आदतों के बारे में जानकारी मिलती है। दोनों टीमों के अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि ये कंकाल पंजाब या पाकिस्तान के लोगों के नहीं हैं। इनके डीएनए सीक्वेंस उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों से मेल खाते हैं।
इस अध्ययन में शामिल बीएचयू के जंतु विज्ञानी प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा कि यह निष्कर्ष भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों के इतिहास में एक प्रमुख अध्याय जोड़ेगा। डीएनए एक्सपर्ट नीरज राय ने कहा कि यह शोध इतिहास को साक्ष्य आधारित तरीके से स्थापित करने में मदद करता है। शोध का निष्कर्ष कहता है कि 26वीं मूल बंगाल इन्फैंट्री बटालियन के सैनिक मियां मीर (अब पाकिस्तान में) तैनात थे और विद्रोह के बाद ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें पकड़कर मार डाला। बीएचयू के विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. एके त्रिपाठी ने कहा कि यह अध्ययन ऐतिहासिक मिथकों की जांच में प्राचीन डीएनए आधारित तकनीक की उपयोगिता को दर्शाता है।