वाराणसी। सर सुंदरलाल अस्पताल के डॉक्टरों ने एक और पहल करते हुए नई तकनीक से लिवर सिरोसिस का इलाज शुरू किया है। इस इलाज के लिए अबतक इस क्षेत्र के लोगों को बड़े शहरों का रुख करना पड़ता था। इस विधि को ट्रांस-जुगुलर इंट्रा हिपैटिक-पोर्टो सिस्टमिक शंट (टीआईपीएसएस) कहा जाता है।
चिकित्सा विज्ञान संस्थान के रेडियोडायग्नोसिस एंड इमेजिंग विभाग के डॉ. आशीष वर्मा, डॉ. प्रमोद कुमार सिंह, डॉ. ईशान कुमार और एनेस्थीसिया विभाग के प्रो. रामबदन और प्रो. निमिषा वर्मा ने एक महिला पर इस विधि का प्रयोग किया। इस महिला को जो बीमारी थी, उसे चिकित्सकीय भाषा में बड- चेइरी सिंड्रोम कहा जाता है। महिला का इलाज गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के डॉ. विनोद कुमार कर रहे थे।
चिकित्सकों के मुताबिक यह स्थिति तब उत्पन्नन होती है, जब लिवर की नसों में अवरोध हो जाता है। इसके कारण पेट में ज्यादा पानी भर जाता है और यह लिवर सिरोसिस में बदल जाता है। जिस महिला का इलाज किया गया, उसे पेट में काफी दर्द होता था। पेट और भोजन की नली से खून के रिसाव का खतरा भी बढ़ गया था।
क्या है टीआईपीएसएस
यह एक कृत्रिम मार्ग होता है, जिसे पाचन संबंधी मार्ग के जरिए लिवर से हृदय के दाएं हिस्से तक ले जाया जाता है। फिर इसमें धातु की नली, जिसे स्टेंट कहते हैं, डाली जाती है। यह लिवर की नसों से हृदय में जाने वाली बड़ी नस को जोड़ती है। यह प्रक्रिया आमतौर पर गर्दन की नस में एक छोटा छिद्र करके पूरी की जा सकती है। कुछ मौकों पर इसे कमर की नस से भी किया जा सकता है।
इस प्रक्रिया में जोखिम भी होता है
चिकित्सकों के मुताबिक इस प्रक्रिया के दौरान रक्तस्राव, बेहोश करने वाली दवाओं का दुष्प्रभाव हो सकता है। स्टेंट के ब्लॉक हो जाने की स्थिति में यह प्रक्रिया विफल भी हो सकती है, लेकिन डॉक्टर बैलून की मदद से इस ब्लॉक को खोलकर नियंत्रित कर सकते हैं।