वाराणसी। महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती, काशी एवं तमिलनाडु की साझी संस्कृति के खोजकर्ता एवं उन्नायक हैं। शुक्रवार को काशी तमिल संगमम् के अंतर्गत बीएचयू में आयोजित परिचर्चा का यही सार तत्व रहा। “महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती एवं काशी से उनके संबंधों से प्रेरणा” विषय पर आयोजित परिचर्चा में विद्वानों के मध्य महान राष्ट्रवादी, कवि, स्वतंत्रता सेनानी तथा समाज सुधारक भरतियार पर समृद्ध विचार-विनिमय हुआ।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि तेलंगाना की राज्यपाल एवं पुद्दुच्चेरी की उपराज्यपाल डॉ. तमिलिसै सौंदरराजन ने अपने वक्तव्य में कहा कि सुब्रह्मण्यम भारती की वैचारिकी एवं जीवन गठन में उनके काशी वास का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने काशी में रहकर ही हिंदी एवं संस्कृत भाषाएं सीखीं। डॉ. सौंदरराजन ने कहा कि महाकवि भारती, महिला सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने महिलाओं के लिए ” चक्रवर्तिनी” नामक पत्रिका का संपादन भी किया।
मुख्य अतिथि महोदया ने बीएचयू के संस्थापक महामना मदन मोहन मालवीय के प्रति आदरांजलि व्यक्त करते हुए मूल्य शिक्षा एवं विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में बीएचयू के अवदान का उल्लेख किया। उन्होंने बीएचयू एवं हैदराबाद के संबंध को भी रेखांकित किया। काशी तमिल संगमम के आयोजन के लिए भारत सरकार का धन्यवाद जताते हुए राज्यपाल ने कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से देश के दो भिन्न भागों में रह रहे लोग एकता एवं समता के सूत्र में आबद्ध हों रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में विकसित एवं रूपांतरित हो रही काशी की हार्दिक सराहना की।
प्रसिद्ध पत्रकार एवं लेखक वी. मालन नारायणन ने कहा कि वैचारिकी के साथ-साथ उनके बाह्य व्यवहार को भी काशी ने प्रभावित किया। यहां रहते हुए ही उन्होंने मूंछ रखना एवं पगड़ी पहनना शुरू किया और यही उनकी पहचान भी बन गया। उन्होंने बताया कि ये काशी की धरती ही थी जहां, सुब्रमण्य भारती में राष्ट्रवाद व महिला सशक्तिकरण का भाव और प्रबल हुआ। इस नगरी में वे एनी बेसेंट व श्री अरविंद के संपर्क में भी आए। महाकवि की बौद्धिक चेतना को प्रबुद्ध करने में काशी के ज्ञान का सर्वाधिक प्रभाव रहा।
शिक्षाविद व अंग्रेजी तथा तमिल लेखक डॉ. पी. राजा ने कहा कि तमिलनाडु में “सुब्बैया” कहलाने वाले सुब्रह्मण्यम भारती, काशी में “शैलि-दासन” हो गए। सुब्रह्मण्यम भारती अंग्रेजी कवि शैलि से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने शैलि के कार्य का वृहद अध्ययन किया और इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने “शैलि-दासन” ने नाम से लिखना भी शुरु किया। उन्होंने कहा कि सुब्रह्मण्य भारती के मन में काशी के प्रति विशेष अनुराग था।
स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीयों में एकात्मता व एकता से साथ संघर्ष करने के लिए प्रेरित करने में सुब्रमण्य भारती के योगदान को रेखांकित किया गया। साथ ही साथ इस बिंदु पर भी ज़ोर दिया गया सुब्रह्मण्य भारती के साहित्यिक कार्यों को प्रचारित करने की आवश्यकता है, जिससे नवागत पीढ़ी महान व्यक्तित्वों, विचारकों एवं दार्शनिकों के कृतित्व से प्रेरणा पा सके।
बीएचयू के जीवविज्ञान विभाग के प्राध्यापक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने डीनए आनुवांशिकी पर प्रेजेंटेशन दिया। उन्होंने कहा कि अफ्रीका में भले ही आधुनिक मानव की उत्पत्ति हुई, लेकिन उनका प्रारंभिक विकास भारतवर्ष में हुआ। भारत वर्ष के किन्हीं दो लोगों की कम से कम 30% जेनेटिक एन्सेस्टरी एक समान है। काशी एवं तमिल लोगों की आनुवांशिक वंशावली के घटक एक ही हैं।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रो. ए. गंगाधरन ने स्वागत वक्तव्य देते हुए बीएचयू एवं तमिलनाडु के सम्बन्धों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु से बड़ी संख्या में विद्यार्थी अध्ययन व शोध हेतु बीएचयू आते हैं। उन्होंने बताया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के 28 कुलपतियों में से तीन कुलपति तमिलनाडु से हुए।
सामाजिक विज्ञान संकाय की संकाय प्रमुख प्रो. बृंदा परांजपे ने स्मृति चिन्ह प्रदान कर अतिथियों का स्वागत किया। अंग्रेजी विभाग की डॉ. धृति ने कार्यक्रम का संचालन किया। संगीत एवं मंच कला संकाय की शोध छात्रा अपर्णा पांडेय ने कुलगीत प्रस्तुत किया।
अकादमिक परिचर्चा के पश्चात काव्य पाठ का आयोजन हुआ। तमिलनाडु से आए कवियों ने विविध विषयों पर काव्य पाठ किया, जिनमें प्रमुख विषय रहे काशी तमिल संगमम की प्रासंगिकता, तमिलनाडु तथा वहां की संस्कृति पर काशी का प्रभाव, दोनों संस्कृतियों के बीच आध्यात्मिक संबंध तथा काशी व तमिलनाडु के बीच शैक्षणिक संबंध।