वाराणसी। बीएचयू के भारत अध्ययन केन्द्र एवं भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के संयुक्त तत्त्वावधान में ‘भारतीय भाषा परिवार: भाषा चिन्तन की साझी परम्परा’ पर केन्द्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ।
उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि ‘भाषाओं में एक सूत्रता आवश्यक है कोई भी भाषा किसी भी भाषा की जननी नही है। सबका अपना-अपना अस्तित्व है।’ उन्होंने बताया कि भारत में असंख्य भाषाओं का उल्लेख है सभी भाषाएं एक-दूसरे को पोषते हुए साथ-साथ विकसित होती हैं। आइसोलेशन में किसी भी भाषा का विकास नही होता।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. रजनीश कुमार मिश्र ने बताया कि ‘भाषा तत्व मीमांस ही नहीं ज्ञान मीमांसा भी है, वह माध्यम होने के साथ-साथ चिन्तन के लिए भी जरूरी है’। उद्घाटन सत्र मालवीय जी के चित्र पर पर माल्यापर्ण, दीपप्रज्वलन एवं कुलगीत के साथ शुरू हुआ।
प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी ने स्वागत वक्तव्य में बताया कि भाषा वाह्य आवरण है साहित्य आन्तरिक है। इसीलिए वाह्य आवरण बदलता रहता है। संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए डाॅ. चन्दन श्रीवास्तव ने भारतीय भाषा समिति के गठन एवं उसके उद्देश्य को बताते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषा शब्द 30 बार प्रयोग किया गया है। इससे भारतीय भाषा की महत्ता समझी जा सकती है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में भारतीय भाषा समिति 270 भाषाओं पर कार्य कर रही है।
संगोष्ठी की रूपरेखा एवं बीज वक्तव्य प्रो. प्रभाकर सिंह ने प्रस्तुत किया। रामविलास शर्मा एवं किशोरी दास वाजपेयी का हवाला देते हुए भारतीय भाषाओं की साझी परम्परा को विवेचित किया। सत्र का संचालन डाॅ. अमित कुमार पाण्डेय व आभार ज्ञापन प्रो. नीरज खरे ने किया।
प्रथम सत्र की कड़ी में प्रो. अवधेश प्रधान ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भाषायी विविधता के बावजूद पूरे भारत में एक सांस्कृतिक संवादात्मक समाज हमें देखने को मिलता है। सत्र के प्रमुख वक्ता प्रो. आशीष त्रिपाठी, प्रो. मनोज कुमार सिंह, डाॅ. संदीप भुयेकर एवं डाॅ. आशुतोष कुमार सिंह ने भारतीय भाषाएँ एवं भक्ति आन्दोलन विषय पर विचार व्यक्त किये।
सत्र का संचालन एवं धन्यवाद डाॅ. पुनीत कुमार राय ने दिया।
द्वितीय सत्र ‘भारतीय भाषा परिवार: ज्ञान की विविध परम्पराएँ’ विषय पर केन्द्रित रहा इसकी अध्यक्षता प्रो. लालचन्द राम ने की। सत्र के प्रमुख वक्ताओं में प्रो. शान्तनु बनर्जी, डाॅ. विनम्रसेन सिंह, डाॅ. रमाशंकर सिंह ने अपने बीज वक्तव्य दिये। सत्र का संचालन एवं धन्यवाद डाॅ. मानवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया।