वाराणसी। बिना संगीत के साहित्य नहीं है।संगीत बुनियादी तौर पर नाद है। गूंज है। ध्वनि है। साहित्य व संगीत के बीच के संवाद जनपदीय व सांस्कृतिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
बीएचयू के भोजपुरी अध्ययन केंद्र में नवागत शोध छात्रों के शनिवार को परिचय समारोह में संगीत विभाग के शिक्षक डॉ. रामशंकर ने यह बात कही। अध्यक्षता करते हुए केंद्र समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि नवागत शोध छात्रों का परिचय समारोह उनके कला कौशल को प्रदर्शित करने का एक माध्यम है, जिसमें छात्रों की प्रतिभा से परिचय होता है। उन्होंने कहा कि भोजपुरी केन्द्र अपने शोधार्थियों के माध्यम से भोजपुरी भाषा व साहित्य के विकास के लिए कृत संकल्प है। उन्होंने जनपदीयता की समझ के लिए संगीत व साहित्य के बीच संवाद को जरूरी माना।
प्रो. चम्पा सिंह ने कहा कि केंद्र की विविध गतिविधियां छात्रों के मानसिक विकास के लिए जरूरी हैं। इस रूप में उन्होंने छात्रों को संवादी बनाने पर जोर दिया। हिंदी विभाग के शिक्षक डॉ. विंध्याचल यादव ने कहा कि गंभीर शोध कार्य के लिए सामाजिक संपृक्तता आवश्यक है. जिसके लिए केंद्र की भूमिका सराहनीय है। डॉ. महेंद्र कुशवाहा ने कहा कि साहित्य व संगीत जीवन जीने की कला है. जिसके लिए यह केन्द्र अपेक्षित अवसर प्रदान करता है।यही आपके विकास का माध्यम भी है। डॉ. रवि सोनकर ने कहा कि जीवन में साहित्य व संगीत सहचर हैं जिसे केन्द्र के शोध छात्रों ने ठीक से समझा है।
कार्यक्रम का संचालन उदय पाल ने किया। शोध छात्र आर्यपुत्र दीपक ने स्वागत किया। धन्यवाद ज्ञापन राणा अवधूत कुमार ने दिया। इस अवसर पर संगीत के छात्रों अलका, आदित्य पांडेय, अमर कृष्ण दीक्षित, विनय खरवार व सुधीर कुमार गौतम ने शानदार सांगीतिक प्रस्तुति दी।