वाराणसी। अन्तर-संस्कृतिक अध्ययन केंद्र एवं बीएचयू के मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र की ओर से द्वि-दिवसीय विशिष्ट व्याख्यान शृंखला सोमवार को शुरू हुई। मुख्य अतिथि प्रख्यात कलाविद् एवं साहित्यकार प्रो. उदयन वाजपेयी ने ‘आख्यान और संस्कृति’ विषय पर कहा कि भारतीय समाज में अव्यवस्था और व्यवस्था साथ में चलती है, जो यहां की विशेषता है।
उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में शब्द और अर्थ दोनों का महत्व है। वेदों में शब्द का विशेष महत्व है, जो वेदों की विभिन्न पाठ पद्धतियों में दिखाई पड़ता है। भाषा मानव समाज की नैसर्गिक संभावना है, नैसर्गिक उत्पाद है। भारत में प्रकृति की निरंतरता में संस्कृति का विकास हुआ और यूरोप में प्रकृति में सुधार करने का प्रयास किया गया। भारत में लोक और नाट्य की जो परम्परा है, उसने हमें कई ख्यातिलब्ध कलाकार दिए हैं। गांधी ने भारत को नगर केन्द्रित पश्चिमी सभ्यता का विकल्प प्रस्तुत किया। गांधी जी ने भारत को यूरोप की छाया से बाहर निकालने का प्रयास किया। प्रो. वाजपेयी ने कहा कि यदि हम किसी भी समाज के संगीत को जान ले तो उस संस्कृति को अच्छी तरह से जान सकते हैं।
अतिथियों का स्वागत करते हुए अन्तर-संस्कृतिक अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो. राजकुमार ने कहा कि प्रो. उदयन वाजपेयी साहित्य, संगीत, चित्रकला, स्थापत्य और सिनेमा जगत के सन्दर्भ में समान अधिकार से चर्चा करते हैं। आज उनके व्याख्यान से हम विश्वविद्यालय में एक विशिष्ट व्याख्यान शृंखला का आरंभ कर रहे हैं, जो अन्तर-संस्कृतिक अध्ययन केन्द्र और मालवीय मूल्य के सम्मिलित प्रयास से सफल होगी।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र के समन्वयक प्रो. संजय कुमार ने कहा कि प्रो. उदयन वाजपेयी के व्याख्यान ने ज्ञान के नए आयामों को हमारे सामने खोला। उन्होंने विचार के नए सूत्र हमें दिए। कार्यक्रम में बीएचयू के वरिष्ठ परामर्शदाता प्रो. कमलशील, प्रो. अर्चना कुमार, प्रो. राकेश कुमार मिश्रा, प्रो. बलराज पाण्डेय, प्रो. कृष्ण मोहन पाण्डेय, प्रो. नीरज खरे, प्रो. प्रभाकर सिंह, प्रो. आशीष त्रिपाठी, प्रो. रामाज्ञा शशिधर, डॉ. उषा त्रिपाठी, डॉ. राजीव वर्मा, डॉ. धर्मजंग, डॉ. महेन्द्र कुशवाहा एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थी एवं उपस्थित थे।