नई दिल्ली। भारतीय बैडमिंटन टीम की थॉमस कप में ऐतिहासिक जीत को 1983 की विश्वकप क्रिकेट जीत की तरह देखा जा रहा है। 73 साल के थॉमस कप के इतिहास में भारत छठी टीम है, जिसने यह प्रतिष्ठित प्रतियोगिता जीती। इसमें फिलवक्त 16 देश शामिल होते हैं।
थॉमस कप का नाम इंग्लैंड के खिलाड़ी जॉर्ज एलन थॉमस के नाम पर रखा गया है। वह सन् 1900 के दौर में खेला करते थे। उन्होंने ही फुटबॉल विश्वकप और डेविस कप टेनिस की तर्ज पर बैडमिंडन के लिए एक वैश्विक चैंपियनशिप कराने का प्रस्ताव रखा था। इसके करीब 48 साल बाद 1948 में उनके ही नाम पर थॉमस कप प्रतियोगिता शुरू की गई थी। भारतीय टीम अबतक सिर्फ 13 बार इस चैंपियनशिप के लिए क्वालिफाई कर सकी है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय टीम जब इस साल थॉमस कप खेलने उतरी थी तो उसकी जर्सी पर बैडमिंडन के उपकरण और कपड़े बनाने वाली कंपनी योनो का लोगो लगा था। चैंपियन बनने के बाद अब उम्मीद की जाती है कि कारपोरेट जगत की रुचि भारत में इस खेल में बढ़ेगी और भारतीय बैडमिंटन टीम की जर्सी का कलेवर भी उसी तरह बदला दिखने लगेगा, जिस तरह 1983 की विश्वकप जीत के बाद भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी का बदला था।
भारतीय बैडमिंटन अब विश्वस्तर पर आगे बढ़ने के लिए पूरी तरह तैयार है। अगर इसको कारपोरेट जगत का सहयोग मिलता है तो कई नए प्रतिभाशाली खिलाड़ी आगे आ सकते हैं। भारत के दो खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण (1980) और पुलेला गोपीचंद (2001) ने जब ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन प्रतियोगिता जीती तब भी कुछ ऐसा ही माहौल बैडमिंटन का भारत में बना था, जैसा इस समय है। हालांकि इसे वह प्रमोशन नहीं मिला, जिसकी जरूरत थी। पादुकोण तो 1980 में विश्व के नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी भी रहे।
मौजूदा समय में किन्दांबी श्रीकांत, प्रणय एचएस, लक्ष्य सेन, सात्विक साईराज रेंकी रेड्डी, चिराग शेट्टी और महिलाओं में सायना नेहवाल और पीवी सिंधु जैसी खिलाड़ियों ने भारत में बैडमिंटन के स्तर को काफी ऊंचा उठाया है। 2022 में ऑल इंग्लैंड बैमिंटन में लक्ष्य सेन उपविजेता रहे थे। 2021 में उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था। सिंधु दो बार ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिली बैडमिंटन खिलाड़ी हैं।
बैडमिंटन में भारत की हालिया उपलब्धियों के मद्देनजर यह उम्मीद बढ़ गई है कि कारपोरेट जगत इस ओर भी ध्यान देगा और भविष्य में क्रिकेट की ही तरह भारत का बैडमिंटन में भी विश्व में डंका बजेगा।
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